For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो तुम

न जाने कहाँ हो!

तुम्हें देख रही है मेरी आँखें

तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें

तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें

लेकिन तुम नहीं हो 

बहुत दूर दूर तक

बहुत दूर ...के पार

हाँ! शायद तुम वहाँ हो

सुनो तुम...

 

जाने, तुम हो भी या नहीं

कभी तो लगता है यही

पर तुम्हें होना चाहिए

है न

पर मै नहीं हूँ

तुम्हारे होने तक

मेरी नज़रें

नही जातीं वहाँ तक

कि तुम जहाँ हो

सुनो तुम,

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

             - गीतिका 'वेदिका'

(मौलिक/ अप्रकाशित) 

 

 

 

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 5:02pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय अमन जी!

आपने मेरे प्रश्न का मान रखा| मै अभिभूत हुयी आपके उदारता पूर्वक दिए गये समाधान से|

सादर !!   

Comment by aman kumar on August 20, 2013 at 4:53pm

जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। उदाहरण -

बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।

कर बिनु कर्म करै विधि नाना।

आनन रहित सकल रस भोगी।

बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।

आपकी आँखे देख रही है ....................

ताक रही है 

थम रही है .......

फिर भी .............

कहा हो ???...........

ये मैंने प्रसंसा मे लिखा था .......  

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 4:40pm

आदरणीय अमन जी ! आपका हार्दिक आभार, आपने रचना को सराहा| यदपि मै समझ नही सकी  

//के बाद ..........

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

ये तो अलंकार युक्त रचा हुई ........// आप के कहने का आशय क्या था! अतुकांत रचना पर अभी अभी हाथ साधना शुरू किया है, कोई कमी बीसी देखिये तो सुझाव का सहर्ष स्वागत है| 

सादर !!   

Comment by aman kumar on August 20, 2013 at 4:06pm

तुम्हें देख रही है मेरी आँखें

तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें

तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें 

के बाद ..........

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

ये तो अलंकार युक्त रचा हुई ..........

अच्छी रचना बधाई 

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 2:08pm

आदरणीया विनीता जी!

बहुत बहुत आभार, आपने रचना पर आकर रचना को प्रोत्साहित किया!

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:02pm

आदरणीया सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 11:13am

सुन्दर, भावयुक्त रचना पर बधाई स्वीकारें, गीतिका 'वेदिका' जी.

Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 11:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी! आपको कविता के भाव सुंदर लगे, आपने सराहना दी, आपकी आभारी हूँ| 

सादर !! 

Comment by annapurna bajpai on August 19, 2013 at 11:05pm
अरे वाह! आदरणीया गीतिका जी बड़े सुंदर भावों की अभिव्यक्ति हुई है ।
Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 10:08pm

आत्मीय प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार जितेन्द्र जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service