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चाँद की बात न कर

न मौसम बदलता है,

न एहसान चढाता है

न जलता-जलाता,

बस खुद को लुटाता है

 

समझता है .मेरी व्यथा

जी जान से

मेरी थकान मिटाता है 

दुबला जाता कैसे

मेरे गम में

 

और पाकर मुझे

कुप्पे सा फूल जाता है

 

चाँद की बात न कर

वह तो हर रात नया रूप

यौवन भरपूर..

मुझे रिझाने में जुटा

 

उसका यह सिलसिला तो

सदियों से है...

 

उसके जैसी चाह

उसके जैसी शोखी

और भला किस में है ?

 

प्रेमियों का प्रेम है

मेरे इस चाँद की बात न कर... !! 

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Vasundhara pandey on August 6, 2013 at 5:02pm

श्याम जुनेजा जी ,, आभार आपका बहुत बहुत इतना सुन्दर बात और ओ भी चाँद का तो मैं क्यूँ न सुनु...

Comment by aman kumar on August 6, 2013 at 4:47pm

चाँद का रूपक , 

सच मे सजीव हो गया है चाँद आपकी रचना मे,

अतिसुंदर !

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 4:26pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by Vasundhara pandey on August 6, 2013 at 3:16pm

धन्यवाद आदित्य जी ,आभार  !!

Comment by Aditya Kumar on August 6, 2013 at 2:48pm

प्रेमियों का प्रेम है

मेरे इस चाँद की बात न कर... !! 

सुन्दर अभिव्यक्ति ! हार्दिक बधाई !

कृपया ध्यान दे...

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