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ऐसे ही बनेगा सशक्त समाज

भारत जैसे विशाल देश का समाज भी उतना ही बड़ा है। ऐसे में हर किसी का दायित्व बनता है कि वे स्वच्छ समाज के निर्माण में सकारात्मक योगदान दें। देखा जाए तो आधुनिक समाज में कई तरह की अपसंस्कृति हावी हो गई है, इन्हीं में से एक है, नशाखोरी। यह बात आए दिन कई रिपोर्टों से सामने आती रहती है कि नशाखोरी से व्यक्ति और समाज को किस तरह नुकसान है। बावजूद, लोग अपसंस्कृति के दिखावे में ऐसे कृत्य कर जाते हैं, जिससे समाज शर्मसार तो होता ही है, खुद उस व्यक्ति का भी भविष्य दांव पर लग जाता है। नशाखोरी की प्रवृत्ति के कारण समाज में शांति कायम करने मुश्किलें किस तरह उत्पन्न होती हैं, यह किसी से छिपी नहीं हैं। विचारणीय बात यह है कि शिक्षा के अभाव में कुछ ऐसे बच्चे भी नशाखोरी के आदी हो जाते हैं, जो जिंदगी की अहमियत के बारे में कुछ जानते तक नहीं है। इस तरह के हालात में सशक्त समाज के लिए हाल के दो अनुकरणीय निर्णय तथा प्रयास महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं। एक नाम क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेन्दुलकर हैं, तो दूसरे नाम हैं, विप्रो कंपनी के प्रमुख बेंगलूर के अजीम प्रेमजी।
हाल ही में सचिन तेन्दुलकर ने एक शराब कंपनी के लिए विज्ञापन करने से इंकार कर दिया, जबकि उन्हें इस करार से साल भर में 20 करोड़ रूपये मिलने वाले थे। समाज हित में लिए गए उनके इस निर्णय को काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है, क्योंकि वे आज अधिकांश युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं और उनकी इस सकारात्मक सोच से समाज में बढ़ रही इस कुुरीति से दूर रहने, सबक के तौर पर लिया जा सकता है। सचिन तेन्दूलकर की ओर से मीडिया में जो बयान आया है, उसके अनुसार- उन्होंने अपने पिता से यह बातें कहीं थीं कि चाहे उन्हें विज्ञापन के लिए कितनी भी रकम मिले, लेकिन वे समाज के अहित में होने वाले कुप्रभावों के पक्ष में कोई भी विज्ञापन नहीं करेंगे। वैसे इस बात का कभी खुलासा नहीं हुआ था कि वे किसी शराब कंपनी का विज्ञापन नहीं करेंगे, लेकिन जब उन्हें पहली बार इस तरह का ऑफर मिला तो सचिन तेन्दुलकर ने शराब से समाज को होने वाले नुकसान के कारण ऐसे विज्ञापन से किनारा कर लिया। यह बात सही है कि कई नामचीन शख्सीयत हैं, जो शराब का विज्ञापन कर रहे हैं और उन्हें इसके एवज में करोड़ों रूपये भी मिल रहे हैं, मगर उन जैसों को क्रिकेट के क्षेत्र में दुनिया में परचम लहराने वाले महान सचिन से कुछ सीखने की जरूरत है, उन्होंने इस तरह निर्णय लेकर एक मिसाल ही पेश की हैं। कुछ बरस पहले जब सचिन का खराब दौर चल रहा था, उस दौरान कईयों ने यह कहा था कि सचिन तेन्दुलकर का ध्यान केवल विज्ञापन पर है, न कि खेल पर है। हालांकि उन्होंने उस हालात से उबककर भारत के लिए ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए, जिसके किनारे दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता। आज की स्थिति में देखें तो उन लोगों की जुबान पर जरूर ताला लग गया होगा, जो कभी सचिन जैसे महान खिलाड़ी को लेकर कटाक्ष किए करते थे। देश और समाज हित में आज सचिन तेन्दुलकर द्वारा जिस तरह निर्णय लिया गया है, वह आने वाली पीढ़ी के लिए भी काफी मायने रखेगा, क्योंकि आज के लाखों युवा इस कुप्रवृत्ति के जाल पर फंस चुके हैं। सचिन के इस प्रयास को निश्चित ही सशक्त समाज निर्माण में सार्थक माना जा सकता है।
एक ओर जहां सामाजिक क्षेत्र में क्रिकेट के साथ सचिन तेन्दुलकर ने महानता का परिचय दिए हैं, कुछ ऐसे ही समाज हित में कार्य किए हैं, बेंगलूर के आईटी क्षेत्र के दिग्गज जाने माने वाले विप्रो कंपनी के मालिक अजीम प्रेमजी। उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपनी दौलत में से करीब 88 सौ करोड़ रूपये एक ट्रस्ट को दिया है, जो काबिले तारीफ है। ऐसा कम देखने को मिलता है, जब कोई बड़ा उद्योगपति अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा परोपकार के लिए दें और लोगों के दुख-दर्द में सहभागी बनें। समाजसेवी अजीम प्रेमजी का परोपकार की सोच, आज के आधुनिक समाज, जहां किसी को दूसरे के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है, के लिए बड़ी मिसाल है, जिससे अन्य उद्योगपतियों के बीच एक ऐसा संदेश गया है कि वे भी कुछ इसी तरह कार्य कर समाज के प्रति अपना दायित्व प्रदर्शित करें।
अधिकतर यह देखा जाता है कि रकम हाथ में होने के बाद उसके प्रति व्यक्ति का मोह कायम हो जाता है, साथ ही वह अपनी सौ-दो सौ पीढ़ी के बारे में सोचने लगता है। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत रहनी चाहिए कि हम अपनी पीढ़ी को निकम्मी बनाने की कोशिश करते हैं। यहां एक बात बताना जरूरी है कि अमेरिका के माइक्रोसाफ्ट कंपनी के मालिक बिल गेट्स एक अरसे से दुनिया के उद्योगपतियों के बीच यह अभियान चला रहे हैं कि उद्योगपति अपनी दौलत परोपकार में भी लगाएं, जिससे समाजसेवा के प्रति उनकी समर्पण की भावना सीधे लोगों से जुड़ सकें। कुल-मिलाकर यही कहा जा सकता है कि कुछ लोग समाजसेवा के नाम पर अस्पतालों तथा आश्रमों में फल व कपड़ा बांटकर वाह-वाही लुटने की कोशिश करते हैं, उनके लिए यह सबक है। ऐसा नहीं है कि परोपकार के लिए अधिक राशि चाहिए, कम राशि होने के बाद भी लोगों के बीच समाजसेवा किया जा सकता है, लेकिन उसमें किसी तरह का दिखावा नहीं होना चाहिए।
निश्चित ही ऐसे व्यक्तित्व भारतीय समाज और देश के लिए गौरव की बात हैं, क्योंकि जिस देश में आज की स्थिति में जहां भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हो गई हों और धनपुरूशों में पैसा बटोरने का ऐसा बुखार चढ़ गया है, जिससे गरीब जनता पीस रही है। देश के धन को विदेशी बैंकों में जमा कर, उसे काला धन बनाने का जो कुत्सित प्रयास बरसों से जारी है, ऐसे में लोगों को इनकी परोपकारी भावना से रूबरू होना चाहिए। इनकी सोच सशक्त समाज के लिए बहुत हितकारी है।

राजकुमार साहू
लेखक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार हैं

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 098934-94714

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