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एक निर्झर नदी सी बहो 

खिलखिलाती हुई कुछ कहो 

फासले अब नहीं दरमियां 

आंच है,उम्र है,गरमियां

अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह 

जैसे हों झील में मछलियां 

थाम लेंगे  तुम्हे  कूल  ये 

पास जब और कोई न हो 

गम मिले तो हँसे  हम बहुत 

दर्द से कोई यारी नहीं 

पल रहे हैं नयन में सपन 

नींद में अब खुमारी नहीं 

चांदनी मुस्कुराती लगे 

प्यास अब तो न कोई कहो 

_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक ,अप्रकाशित )

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 1, 2013 at 6:10pm

बहुत खूबसूरत नवगीत 

हर पंक्ति में थिरकन है..माधुर्य है..रवानी है..ज़िंदगी है 

प्रथम बंद पर तो मनमुग्ध है..बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए 

सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:16pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर मनोहारी नवगीत रचा है आपने, मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:24pm

बहुत ही सुन्दर नवगीत रचा है आपने! आपको मेरी हार्दिक बधाई!

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:40pm

एक निर्झर नदी सी बहो 

खिलखिलाती हुई कुछ कहो

आदरणीय विश्वम्भर जी,

सादर प्रणाम !

आपका नवगीत अत्यंत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी बन पड़ा है ........हार्दिक बधाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 3:58pm

आदरणीय विश्वम्भर शुक्ल जी, आपके इस नवगीत ने अंतर के कोमल तंतुओं को झंकृत किया है. शिल्प, भाव, शब्द, कथ्य हर कुछ इतना उच्च है कि मैं आपकी इस प्रस्तुति को बार-बार पढ़ रहा हूँ.  और मुग्ध हो रहा हूँ.

एक निर्झर नदी सी बहो .. इस एक पंक्ति ने देर तक रोके रखा, क्योंकि खिलखिलाते हुए कुछ कहने  का निवेदन लिये आती है यह पंक्ति.

फासले अब नहीं दरमियां
आंच है,उम्र है,गरमियां
अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह
जैसे हों झील में मछलियां.. . .  ओह्होह ! एक-एक पंक्ति अथाह है. इन्हें यों ही कहा ही नहीं जा सकता.

आपके अपार अनुभवों के सापेक्ष आपकी प्रस्तुति सुगढ़ हुई है. और मेरे अंदर का पाठक संतुष्ट हुआ है.

सादर बधाई, आदरणीय

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 3:49pm

गम मिले तो हँसे  हम बहुत 

दर्द से कोई यारी नहीं 

पल रहे हैं नयन में सपन 

नींद में अब खुमारी नहीं 

आपके गीत मे जीवन आदर्श है जो एक बाकिफ उम्र पर प्राप्त हो ता है |

अच्छा सा

 गीत ! आभार !

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 3:05pm

सुंदर गीत …

एक निर्झर नदी सी बहो 

खिल खिलाती हुयी कुछ कहो 

 

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