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प्रेम तुम्‍हारी कविता है

प्रेम तुम्‍हारी कविता है

और मेरा अहसास

रहते हैं कुछ ख्‍वाब पिरोए

दोनों दिल के पास

और अधर जब नीरव हंसते

साथ भींगती रात

बिंदिया पर बिखरे पड़े

सोते कुछ जज्‍बात

ऐसे में कुछ शब्‍द अचानक

गढ़ लेते कुछ रीत

सच कहता हूं ऐसे ही तो

बनते मेरे गीत

वक्‍त मिले तो पढ़ना उनको

और लगे जो खास

रख लेना ताबीज समझकर

उनको अपने पास

नहीं जानता किस मुकाम पर

रुक जायेंगें पांव

कहां गगन ये विस्‍मृत होगा

कहां छले ये छांव

(पूर्णतया मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 15, 2013 at 7:08am
आदरणीय..राजेश जी, बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.."और अधर जब नीरव हंसते साथ भीगती रात, बिंदिया पर बिखरे पड़े सोते कुछ जज्बात..नहीं जानता किस मुकाम पर रुक जायेंगे पांव, कहां गगन ये विस्म्रत होगा कहां छले ये छांव .." बेहतर अनुभूति...आदरणीय राजेश जी हार्दिक शुभकामनाऐं..

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