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दे विधान भी कड़े कड़े

चीन ने भारतीय सीमा के अन्दर घुसकर ५ किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई....तब कवि को लेखनी उठानी पड़ती है.......जागरण के लिए.....

1

भारती महान किन्तु अन्धकार का वितान, है अमा समान ज्ञान का नहीं प्रसार है
द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है
मानवीयता न ध्यान, पाप पुण्य व्यर्थ मान, दानवी मनुष्य का मनुष्य पे प्रहार है
धर्म का रहा न मान, रुग्ण आँख नाक कान, शत्रु का लखो विवेक नाश हेतु वार है

2

क्यों नपुन्सकी प्रवृत्ति का प्रसार बार बार, और राष्ट्र शत्रु हौसले लिए बड़े बड़े
अंडमान के दिए गए उसे अनेक द्वीप, रो रहा त्रिवर्ण केतु क्यों दिया बिना लड़े
भीरु संसदीय कार्यपालिका बनी अपार, प्रश्न तो महत्त्वपूर्ण आज ही हुए खड़े
त्याग लोकतन्त्र वीर हाथ में संभाल राज्य देश के निमित्त दे विधान भी कड़े कड़े
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 28, 2013 at 3:32pm

बहुत आभार गणेश बागी जी मै धन्य हुआ......बहुत आभार 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2013 at 9:04am

आदरणीय डॉ आशुतोष बाजपेयी जी, सामयिक मुद्दे पर इन दो घनाक्षरियों के माध्यम से आपने अत्यंत खूबसूरती से करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को स्वर देने का काम किया है, रचना शिल्प देख मुग्ध हूँ , बहुत बहुत बधाई प्रेषित करता हूँ, कृपया स्वीकार करना चाहेंगे । 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 28, 2013 at 9:01am

बहुत बहुत आभार डॉ प्राची जी, अभिनव अरुण जी, जवाहर लाल जी.....इसी प्रकार की स्नेह वृष्टि भविष्य में भी अपेक्षित है.......पुनः आभार

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 28, 2013 at 5:34am

सामयिक आह्वान!

Comment by Abhinav Arun on May 27, 2013 at 6:53pm

सही लिखा डॉ  आशुतोष जी अब समय सीधी  बात का है , सशक्त रचना , आपने कवी धर्म का जिम्मेदार निर्वहन किया है हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 27, 2013 at 6:44pm

सामयिक मुद्दों पर कवि की प्रभावशाली लेखनी पर हार्दिक साधुवाद 

कृपया ध्यान दे...

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