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गुरु वंदन //छंद झूलना (प्रथम प्रयास) ...डॉ० प्राची

छंद झूलना 

(२६ मात्रा,  ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )

गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार 

अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार 

तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार 

प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:46am

आदरणीय डॉ० अजय खरे जी आपके शब्द पारितोषिक की तरह उत्साहवर्धन कर रहे हैं, सादर आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:45am

प्रिय अरुण शर्मा जी, छंद झूलना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ.. आप भी इस छंद पर अवश्य प्रयास करें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:44am

रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आ० श्याम नारायण वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:43am

आदरणीय गणेश जी,

छंद झूलना पर यह प्रयास आपको संतुलित लगा इससे लेखन को ऊर्जा मिली है, आपकी हृदय से आभारी हूँ , 

से प्रभु करो ...में गेयता बाधित लग रही है 

क्या इस पंक्ति को // लो प्रभु शरण, जीवन -मरण, से हो सहज, उद्धार // करना सही होगा...?

सादर. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 25, 2013 at 8:36am

आ० मनोज शुक्ला जी, रचना पर आपके सराह्नात्मक अनुमोदन के लिए आपकी आभारी हूँ 

Comment by Vindu Babu on April 24, 2013 at 9:56pm
आदरेया प्राची जी सादर नमन्।
इस नवीन,रोचक छन्द से परिचित कराने के लिए आपका बहुत आभार। रचना के भाव अति उत्तम हैं।
सादर बधाई स्वीकारें महोदया।
Comment by ram shiromani pathak on April 24, 2013 at 9:30pm

आदरणीया  प्राची मैम,बहुत सुन्दर प्रणाम सहित बधाई स्वीकार करें// एक नया छंद सीखने को मिला मुझे //////

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 8:08pm

आदरणीया प्राची मैम जी,    समग्र समर्पणभाव से पूरित अतिसुन्दर छन्द।  बहुत-बहुत  हार्दिक  बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by vijay nikore on April 24, 2013 at 7:01pm

आपकी रचना पढ़ कर मन सुवासित हुआ।

 

सादर, शुभकामनाओं सहित,

विजय

 

Comment by Usha Taneja on April 24, 2013 at 5:25pm

अति सुंदर रचना!

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