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आज ज़रूरत है

अपने अंदर झाँकने की

आपसी द्वेष और क्लेश से

ऊपर उठने की

 

सामने पड़ी वस्तु पर तो

शायद हम पैर न रखतें हैं  

पर दूसरों की भावनाओं को

पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं

  

जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर

इंसानों को बाँटने में लग गए हैं

एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर

प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं

 

पेड पत्थर कागज़ में तो

भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं

 भगवान् द्वारा बनाए इंसान में

भगवान् नहीं देख पा रहे हैं

 

जिस भगवान् को भटक भटक कर

हम चारों दिशाओं में खोजते हैं

अपने दिलों में झांककर

 उनके वास को ,क्यूँ न तलाशते हैं

 

शायद हमारी मनःस्थिति

उस हिरन की सी हो रही है

जो अपनी नाभि छोड़कर

हर जगह कस्तूरी तलाश रही है

 

विजयाश्री

१९.१२.२०१२

 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:20pm

आ0 विजयाश्री जी,
’आज ज़रूरत है
अपने अंदर झाँकने की
आपसी द्वेष और क्लेश से
ऊपर उठने की’..... अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 14, 2013 at 3:01pm
आदरणीया विजया श्री जी!
हमें जातिगत भावनाओं से ऊपर उठना चाहिये,यह सामाजिक प्रगति में बाधक है। आपने यह भी सच कहा कि हम पेड़-पौधे, पशु- पक्षियों, चित्रों- मूर्तियों में ईश्वर को तो खोजते हैं लेकिन उसी ईश्वर द्वारा निर्मित मनुष्य में ईश्वर के दर्शन नहीं करते, यह हमारे लिये शर्म की बात है।बहुत ही सटीक ढंग से आपने समाज एक के सत्य को उकेरा है बधाई।
कुछ पंक्तियों पर शंका है कृपया समाधान करने का कष्ट करें-
//सामने पड़ी वस्तु पर तो
शायद हम पैर न रखतें हैं//

किस वस्तु पर पैर नहीं रखते? आपके वर्णित वस्तु शब्द की परिधि में क्या-क्या आता है? यद्यपि वस्तुयें तो सभी कुछ हैं।अगर इसी अर्थ में है तो हम बहुत सी वस्तुओं पर पैर रख देतें हैं, तब कथ्य कमजोर पड़ रहा है। यदि किसी खास वस्तु के संदर्भ में है तो क्या उसी वस्तु का नाम लिखना समीचीन नहीं होगा?

//पर दूसरों की भावनाओं को
पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं//

न झिझकते हैं या नहीं झिझकते हैं।

//जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर
इंसानों को बाँटने में लग गए हैं
एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर
प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं//

शायद लगे हैं, और जुटे हैं से भी काम चल सकता है।
सादर
Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:48pm

पेड पत्थर कागज़ में तो

भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं

 भगवान् द्वारा बनाए इंसान में

भगवान् नहीं देख पा रहे हैं///////////बड़े सुन्दर भाव आदरणीया हार्दिक बधाई 

 

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