For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आधुनिक नई धारा हिन्दी साहित्य में कई नई विधाएं अपने साथ लेकर आयी। कई तरह के अभिनव प्रयोग हुए। इन्हीं विधाओं में से एक विधा है गद्य काव्य। इस विधा में त्रिलोचन शास्त्री ने बहुत काम किया।
मैंने एक गद्य काव्य लिखने का प्रयास किया है। मैं नहीं जानता कि मैं कितना सफल या असफल हुआ हूं। अपना यह प्रयास इस मंच पर इस आशय से प्रस्तुत कर रहा हूं कि इसके माध्यम से इस विधा पर कुछ चर्चा हो सके और मेरे साथ साथ सबको इस विधा के बारे में जानने का एक अवसर प्राप्त हो सके।
आशा है सुधी जन मुझे मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
सादर!

गद्य काव्य/ अवसाद

इस गर्मी की दुपहरिया में मैं निश्चल शान्त बैठा था। कमरे के बाहर जैसे आग बरस रही हो। चमड़ी को छीलती सी गरम हवा और अंगारों सी छूती सूरज की किरन। चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। सब घर के भीतर दुबके थे, मैं भी।
कमरा भी निःशब्द था, मैं भी। बाहर भीतर बस खामोशी छायी थी। सब कुछ शान्त। धीरे धीरे न जाने क्यों मेरे मन के भीतर एक सांझ सी उतरने लगी। अवसाद सा भरने लगा। जाने कौन सा दुख मुझमें पैठ बनाने लगा।
महसूस कर रहा हूं कि मेरा अपना दुख मेरे अंदर भर रहा है। मेरे असफल संघर्ष व अतृप्ति की व्यथायें मेरे भीतर लौट लौटकर प्रवेश कर रहे हैं। इस कमरे की सीलन, जर्जर दीवार की झड़ती पपड़ियां, फर्श के गड्ढे, चिटकी छत की दरारें, सब मुझे जकड़ रही थीं। इस कमरे के अंदर बाहर का सारा दर्द मुझे भेदकर मेरे अंदर समा रहा था।
मैं भर गया हूं अवसाद से। फिर भी शायद मेरे भीतर बहुत जगह शेष है इसीलिए बचपन से अब तक के सारे दुख, पत्नी का कष्ट, बच्चे की तकलीफ, रिश्तों की कड़ुवाहट, नातों की टूटती डोर, सब फिर फिर कर मेरे पास आ रहे हैं। सब मुझे घेरकर बांध लेने को आतुर हैं। दरवाजे से टकराकर लौटती हवा की वेदना, धूप की कमरे में प्रवेश न कर पाने की पीड़ा, सब मुझे दिख रही है।
सब चर-अचर, भोगा-अभोगा, भूत-भविष्य दुख बनकर मुझमें समाहित हो रहे हैं और मैं चुपचाप, निश्चल बैठा हूं मूकदर्शक बनकर। प्रतीक्षारत हूं कि शेष सारे दुख आकर इस कदर मेरे भीतर समा जाएं कि अंततः यह घड़ा फूट जाए और सब कुछ बरसात बनकर बह निकले। इस अतृप्त धरा को तृप्त कर दे।
- बृजेश नीरज

Views: 1914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on April 9, 2013 at 11:26pm

केवल भाई आगे चाहे जो कुछ हो आपने मेरी हिम्मत तो बंधा ही दी। जैसे किसी युवक को प्रेम में युवती की सहमति मिल जाए तो फिर दुनिया की परवाह नहीं रहती।
आपका आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 10:19pm

आ0 बृजेश कुमार जी,   आपने इतने क्लिष्ट विषय को सरसराती कलम से अंधेरी खोली में इक धूप की लीक को 120 प्रकाश गति की स्पीड से जो प्रकाशित किया कि सारी खोली जगमग कर गई। सुन्दर प्रस्तुति...शेष गुरू जनो का आर्शीवाद और मार्ग दर्शन हो तो ज्यादा उचित होगा। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service