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आज इतनी जल्दी क्लिनिक बंद कर के कैसे आ गए डॉक्टर साहब निशा ने दरवाज़ा खोलते ही अपने पति से पूछा|डॉक्टर अरुण बोले आज एक ऐसी पेशेंट आई जो तीन बेटियों की माँ थी और चौथी बार गर्भवती थी बोली डॉक्टर साहब मुझे गर्भ से ही एहसास हो रहा है कि ये उस कमीने का होने वाला बीज लड़का ही है जो मुझे नही चाहिए मैं नही चाहती कि कल वो भी किसी की बेटी पर उतने ही जुल्म ढाये  जो इसके बाप ने मेरे और मेरी बेटियों के ऊपर ढाये|और हैरानी की बात ये थी कि वो सच ही कह रही थी उसके गर्भ में लड़का ही था,और मैं नियम क़ानून से बंधा उसकी कोई मदद ना कर सका|बस तब से अपने आप को अस्वस्थ महसूस कर रहा हूँ इस लिए सब कुछ बंद कर के आया हूँ ,जल्दी से चाय पिला दो तो आराम करूँ,और ये सब सुनकर निशा निशब्द,यंत्रवत अपने गर्भ पर हाथ  फिराती हुई  किचन की और चल दी|     

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Comment by rajesh kumari on March 8, 2013 at 7:12pm

हार्दिक आभार वेदिका जी ये सच है किसी स्त्री के लिए ऐसा कदम उठाना आसान नही है हालात हिम्मत दे देते हैं|  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2013 at 7:08pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी हार्दिक आभार आपका कहानी के मर्म में झाँकने की कोशिश की है आपने मेरा इशारा भी इसी  तरफ़ है,अपने पति की बात सुनकर एक अनजाना भय महसूस करती है ,बाकी पाठकों की अपनी- अपनी राय हो सकती है|  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2013 at 7:01pm

राम शिरोमणि जी हार्दिक आभार आपका|

Comment by वेदिका on March 8, 2013 at 5:15pm

धारणा इंसान से क्या नही करवा लेती|अच्छी लघुकथा आदरणीया  rajesh kumari जी!
शुभकामनाये
सादर वेदिका

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2013 at 5:10pm

और ये सब सुनकर निशा निशब्द,यंत्रवत अपने गर्भ पर हाथ  फिराती हुई  किचन की और चल दी|     

क्या निशा भी पुत्र नहीं चाहती 

आदरणीय राजेश कुमारी जी 

सादर 

Comment by ram shiromani pathak on March 8, 2013 at 3:32pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहोत ही बढ़िया लघु कथा......
मै तो बार बार पढ़े जा रहा हूँ ...प्राणाम सहित हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

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