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कल -कल की ध्वनि आ रही ,सुनो मधुर संगीत !
प्रकृति बांसुरी बजती,होता यही प्रतीत !!


शीतल बयार बह रही ,तन-मन ठंडा होय !
देख भ्रमर दल पुष्प पर,ह्रदय प्रफुल्लित होय !!


तरुवर की छाया मिले ,लिये बिछौना घास !
इस प्रकृति वरदान में ,सब ले खुलकर स्वास !!


पेड़ों की रक्षा करो ,कटने ना दें आप !
सबको ,कमी से इनके ,लगे भयानक श्राप !!


राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

Views: 336

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Comment by Dr.Ajay Khare on March 6, 2013 at 4:36pm

paryavarniy kavita ka sunder prastuti badhai

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 6, 2013 at 10:03am

सुन्दर कथ्य और भाव लिए दोहे है | हार्दिक बधाई श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 9:06pm

आदरणीय बृजेश कुमार सिंह  जी हार्दिक आभार !!!!!!!!!!!!!!

Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2013 at 7:24pm

अत्यन्त सुन्दर! अप्रतिम!

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