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एक प्रयास-;
सभी गुरुजनों व् मित्रों का सहयोग और अमूल्य सुझाव चाहूँगा!!

जान दे देते है प्यार में ,
ऐसे भी लोग है इस संसार में !
इतनी अथाह श्रद्धा कैसे ,
"दीपक" क्या वे बीमार थे प्यार में!!

इश्क का छूरा लेकर टहलती है ,
जहाँ मिले वहीँ हलाल देती है !
बड़ी पारखी नज़र है इनकी,
मोहब्बत के मारों को पहचान लेती है!

मनाने चले थे इद,
हो गयी बकरीद !
प्यार किया था जुर्म नहीं,
"दीपक" ऐसी ना थी उम्मीद!

निस्वार्थ प्रेम से जो जाता ,
सारी खुशियाँ वो पाता!
सच्चे भक्ति भाव में डूबा हो,
"दीपक" वही सच्चा भक्त कहलाता!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 7:35pm

aabhar ganesh sir aur sandeep bhai

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:03pm

सच कहा है आदरणीय गणेश सर जी ने ..........रचना को पुनः देखें अच्छे भाव मुखर हुए हैं इसमें जान डाली जा सकती है अर्थात इसे लयबद्ध किया जा सकता है .....शुभकामनये आदरणीय


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2013 at 12:23pm

मात्राओं को संतुलित रखें , फिर देखें .....

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