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ग़ज़ल : बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

आदरणीय गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों यह ग़ज़ल मैंने तरही मुशायरा अंक -३१, हेतु लिखी थी परन्तु समय न मिलने के कारण न तो प्रस्तुत कर सका और नहीं है मुशायरे में अच्छी तरह से भाग ले सका. क्षमा प्रार्थी हूँ सादर

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 5:30pm

धन्यवाद मित्र

Comment by Praveen Verma 'ViswaS' on January 30, 2013 at 5:29pm

सुंदर रचना 'अनंत जी' (y)

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 5:16pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया आरती जी, आपको यहाँ देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई. स्वागत है ओ. बी. ओ. पर.

Comment by Aarti Sharma on January 30, 2013 at 5:15pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति अरुण जी ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 4:45pm

आभार श्याम जी

Comment by Shyam Narain Verma on January 30, 2013 at 4:43pm

BAHOT KHOOB.........................

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 4:43pm

आदरणीय राजेश जी आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन कार्य सफल हुआ. यूँ ही स्नेह बनाये रखें, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 1:10pm

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

बढि़या लगी आपकी प्रस्‍तुति

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