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प्रकृति सौन्दर्य

कितने सुन्दर लग रहे थे ,
डाल पर हिलते सुमन !
मंत्र मुग्ध हो गया सुन ,
भ्रमरों के मधुर गुंजन !!
प्रकृति की अनुपम सुन्दरता,
कितनी कोमल और अनंत !
कल्पने से परे है ,
निर्माणकर्ता की सोच अनन्त !!
पुष्प आगंतुक को सदैव ,
सस्नेह प्रफुल्लित करता है !
हो कोई कैसी भी ऋतू ,
तत्पर सेवा में रहता है !
वातावरण रहेगा सदैव ,
मुस्कुराता मंद मंद !
बस निकलती रहे अविराम ,
प्रसूनों से सुगंध !! 
अप्रकाशित 

Views: 287

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2013 at 7:03pm

सुन्दर प्रकर्ति का वर्णन बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2013 at 6:58pm

वास्तव में फूल रचयिता की अनुपम कृति, इस सुन्दर रचना के लिए ह्रदय से बधाई राम शिरोमणि जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 4:18pm

राम शिरोमणि जी , प्रकृति को काव्य रूप देने का बढ़िया प्रयास है ।

कल्पने से परे है ,..........या कल्पना से परे ?

रचना के अंत में अप्रकाशित के साथ साथ मौलिक होने की घोषणा भी कर दिया करें । बधाई इस प्रस्तुति पर ।

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