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दिन कहीं छुप खो गया है, रात भी बाकी नहीं।

मुश्किलें हैं हर कदम पर, बात बन पाती नहीं।।

 

इक दफा दिल पे कभी, जो राज कोई कर गया।

दूरियां हों लाख चाहे, याद फिर जाती नहीं।।

 

दिल्लगी कर दिल दुखाना, ठीक ये आदत नहीं।

पास तेरे दिल नहीं, तू और जज्बाती नहीं।।

 

नाज तेरी मैं वफ़ा पे, रात दिन करता रहा।

बेवफा तेरी कहानी पर, जुबाँ गाती नहीं।।

 

जख्म गर नासूर बनके, जिस्म को छलनी करे।

मौत है ये जिंदगी, जो मौत कहलाती नहीं।।

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 3, 2012 at 11:06am

रविकर सर आपका साथ और स्नेह ओ. बी. ओ. पर पाकर बड़ी ख़ुशी हो रही है शुर्किया सर

Comment by वीनस केसरी on December 2, 2012 at 11:41pm

अनंत जी बेहद शानदार ग़ज़ल कही है ये दो अशआर खास तौर पर पसंद आए
ढेरों दाद क़ुबूल करें

दिन कहीं छुप खो गया है, रात भी बाकी नहीं।

मुश्किलें हैं हर कदम पर, बात बन पाती नहीं।।

 

इक दफा दिल पे कभी, जो राज कोई कर गया।

दूरियां हों लाख चाहे, याद फिर जाती नहीं।।

 

तीसरे शेअर में पहले मिसरे में भी रदीफ़ आ गई है सही समझें तो उसे दुरुस्त कर लें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 2, 2012 at 10:04pm

दिल्लगी कर दिल दुखाना, ठीक ये आदत नहीं।

पास तेरे दिल नहीं, तू और जज्बाती नहीं।।

वाह !!!  हासिलेगज़ल  शेर, बधाई कबूल करें..

वक़्त थोड़ा सा लगेगा, जान जाओगे मगर

कीमती ये ज़िंदगी है, दिल भी खैराती नहीं ||

Comment by रविकर on December 2, 2012 at 9:27pm

बढ़िया गजल |

शुभकामनायें प्रिय अरुण जी || ||

कृपया ध्यान दे...

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