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देश में चल रही रेस 
जो जीता,नायक उसका-
बना नरेश,
जो हारा झटके से 
उसको लगती भारी ठेस ।
नेताओ ने बदला भेष, 
शेर की खाल में-
देखो गीदड़ की चेस ।
हावी हो रहे हैवान,
बढ़ते जा रहे शैतान ; 
जनता सब है हैरान,
नहीं रहे अब कद्रदान ।
इसको कहते -
जिसकी लाठी -
इसकी भैस,
बाकि सबको-
पहुंचे भारी ठेस ।
 
बढ़ता जाता -
प्रदूषित जहरी धुंआ,
घटता जाता पानी-
सूखे सब कुआं ।
बढ़ता जाये चहुँ और-
मटका खेल औ जुआ,
वोट मानते आता-
वह जुआरी,
नेता भी अब 
हुए मदारी । 
वोट मांगता -
जैसे भिखारी,
जीत जाने पर -
उसी जनता पर-
गांठे सवारी । 
नहीं रुके अब-
यह पल्लम पेल,
नेता खेले-
सब, ठल्लम ठेल ।
 
देश में चल रही -
यह कैसी अंधी रेस,
सहता हरदम सारा देश,
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर  

 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 9:46am

हार्दिक धन्यवाद शालिनी कौशिक जी 

Comment by shalini kaushik on November 23, 2012 at 2:25pm

नेतागर्दी की रेलपेल को बहुत ही सुन्दरता से उकेरा है आपने. आभार

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