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जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको --------

जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको
ढूँढती रहती है दिन रात ये आंखें तुझको
मै दोस्तों से तेरी बात किया करता हूँ
तेरी यादों में सुबह शाम जिया करता हूँ |


और तू है कि मुझे गैर का समझती है
बस यही बात मेरे दिल को भी खटकती है
रोज़ मंदिर में शिवालय में सर झुकाता हूँ
तुम्हे पाने की दुआ मांग के घर आता हूँ |


सामने तुम नहीं होती तो दिल तड़पता है
मै कहीं ढूँढता हूँ ये कहीं भटकता है
फिर कहीं खो गया है इसका पता दो मुझको
छुपा के तुमने रखा हो तो बता दो मुझको |


मेरे सीने में प्रतीक्षा की एक आग सी है
तू भी कुछ कम नहीं फागुन के रंग फाग सी है
मैं चाँद और सितारों को तोड़ सकता हूँ
मैं तेरे वास्ते दुनिया को छोड़ सकता हूँ |


मुझसा कोई चाहने वाला ना मिलेगा ऐसा
तेरे आंगन में कोई गुल ना खिलेगा ऐसा
जो हो तुम्हे पसंद तो बालों में सजा लो अपने
महक उठोगी जो सीने से लगा लो अपने |


मै पूछते हुए डरता हूँ ये सवाल मेरा
कहीं तू रूठ न जाये है ये ख्याल मेरा
बताना मुझको अकेले में या महफ़िल में कहीं
जो मेरे दिल में है वो तेरे दिल में है कि नहीं |

मेरे काव्य संग्रह --कनक से ---

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Comment

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Comment by Dr Nutan on November 8, 2010 at 8:30pm
sundar prempurit rachnaa .. badhai is sundar rachna ke liye..
Comment by jagdishtapish on October 14, 2010 at 9:55am
ji ganesh ji -aabhar dhanyawad aapko

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2010 at 10:10pm
सामने तुम नहीं होती तो दिल तड़पता है
मै कहीं ढूँढता हूँ ये कहीं भटकता है
फिर कहीं खो गया है इसका पता दो मुझको
छुपा के तुमने रखा हो तो बता दो मुझको |

बहुत ही सुंदर कविता, अच्छी रचना है जगदीश भाई साहब, बधाई आपको,

कृपया ध्यान दे...

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