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वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,

बिखरे हम, कर उसके पीले थे,

नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,

घर में बदबू थी, हम सीले थे,

हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:38pm

स्वागत है अनुज .....सस्नेह

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:17pm

आशीष जी शुक्रिया .

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:17pm

भ्राताश्री अम्बरीश जी बस इसी तरह से मार्ग दर्शन करते रहिये, एक दिन अवश्य सीख जाऊँगा. बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:16pm

अलबेला जी सराहना के लिए आभार.

Comment by Ashish Srivastava on July 23, 2012 at 9:52pm

Arun sharma ji is sundar rachna ke liye badhai ..... 

ambarish ji aapke is commnet se mujhe kafi kuch samjh aaya hai , aur mai ise sudhar bhi karunga 

dhnaywaad

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 8:27am

अरुण शर्मा ‘अनंत’ जी, सुंदर रचना रचने का बेहतर प्रयास किया है आपने…. हार्दिक बधाई मित्र...

फिर भी मैं आपको ध्यान दिलाना चाहूँगा कि गेय रचना की गेयता/प्रवाह  टूटना नहीं चाहिए 

तथा निर्धारित की गयी मात्रायें समान होनी चाहिए........उदाहरण के लिए आप अपनी पहली व दूसरी पंक्ति को देखिये ...

२   २११  २  १  १ २ २ = १५

//वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

२२   २२   २ ११  २२  २ =१८

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,//

{मात्रा गणना हमेशा उच्चारण के अनुसार ही की जाती है ....इसीलिए यहाँ पर  ‘वो कंटीले (कँटीले) में ‘वो’ व ‘कं’ को गिरा कर अर्थात लघु रूप में पढ़ा जायेगा}

सुझाव के रूप में निम्नलिखित उदाहरण को देखिये ......  

२  २ ११  २१  १२२  २=१६

वो कोमल और कँटीले थे,

२२   २२   ११  २२  २=१६

आँखें सूखीं, हम गीले थे,

११  २२  २  ११२२  २=१६ 

पथ फूलों के, पथरीले थे,

११  २११  २  ११२२  २=१६

पग कंटक तो जहरीले थे,

२२  २  २२  २२  २=१६

पेंड़ों से  पत्ते ढीले थे,

११२   ११  ११ २  २२  २=१६

बिखरे हम, ‘कर’ वो पीले थे,

२११   ११२   २२२  २=१६

नाजुक नयना शर्मीले थे,

११ २  ११२  २  २२  २=१६

घर में बदबू जो ‘सीले’ थे,

११  २२  २  ११२२   २=१६

अब फीके हैं, चमकीले थे..

सस्नेह

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 11:11pm

वाह वाह अच्छा प्रयास अरुण शर्मा जी

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

__बधाई !

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