For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े आदमी का माँगने का कला (व्यंग्य)

एक बड़ा आदमी अभी बोला कि वो माँगने कू नहीं गया था | उसे तो महामहिम ने अपने आप दे दिया , तो वो ले लिया | वो एकदम ई सच्ची बोला | क्यूं , इस वास्ते कि बड़ा आदमी छोटा चीज कभी नईं मांगता | बड़ा चीज भी वो एसीच्च नईं मांगता | बड़ा आदमी का माँगने का कला भी बड़ा ई अलग होता | अपुन जैसा मिडिल क्लास मांगेगा तो बोलेगा कि मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा | थोड़ा और नीचे जायेंगा , बोले तो एकदम फटीचर क्लास में  तो वो बोलेगा कि माईं बाप अपुन का लाईफ एकदम खलास है , नईं मिलेंगा तो बाल बच्चा बी मर जायेंगा | बोले तो , माँगने की स्टाईल का आदमी की क्लास के साथ एकदम डायरेक्ट रिलेशन होता है | बड़ा आदमी को मांगना होगा तो वो बोलेगा कि देना तो सरकार का काम है , मिलेंगा तो ठीक , नईं मिलेंगा तो ठीक | पर , मिलेंगा तो बड़ी खुशी होगी | बस देने वाला , चाए वो सरकार हो या कोई और एकदम समझ जाता है कि बड़ा आदमी को वो चीज मांगता है और फिर सब उसे वो देने के वास्ते भिड जाते हैं | वैसे बड़ा आदमी का सर्किल बी बड़ा होता है , फिलिम में बी , पोलिटिक्स में बी , स्पोर्ट्स में बी , सोसल में बी | ये सर्किल का लोग एक दूसरे को दिलाने के वास्ते एक दूसरे की मांग रखता रहता है | तो बड़ा आदमी की माँगने की कला एकदम डिफरेंट होता है |

वैसे बड़ा आदमी एकदम सच्ची बोला | कायकू , कि वो जो मिला , उसे माँगने के वास्ते नईं गया था | माँगा तो वो और बी बड़ी चीज था , बोले तो भारत रत्न | बोला था मिलेंगा तो अच्छा लगेंगा | जैसे हमको अच्छा लगा था , जब वो अपना सौवां सेंचुरी मारा था | हमसे लोग बोला कि वो अक्खा दुनिया में खेल कर आया , पर बंगला देश के खिलाफ मारा | हम बोला सेंचुरी , सेंचुरी होता है | वो खाली ग्राउंड में भी मारा होता तो हमको अच्छा लगता | बोले तो पंखा लोग ऐसीएच्च होता है | उनको बस अपने हीरो के वास्ते कोई बोले तो बहुत ई बुरा लगता है | बड़े लोग का पंखा सब जगह लटकता | विधान सभा में बी लटकता | उधर से बी सिफारिश | वैसे अब बड़ा आदमी इतना तो समझता है कि राज्य सभा में उसकू मंडित ई इस वास्ते किया है कि उसका बड़ा मांग का रास्ता साफ़ हो जाए | पर , वो बोला कि उसने माँगा नईं था | वो पुरानी सब बातों को भूल गया | वो कार के वास्ते कस्टम ड्यूटी माफ करना माँगा था | फिर गरीबों के वास्ते रखी गई जमीं अपने वास्ते माँगा था | फिर इनकम टेक्स बचाने के वास्ते किसान बनना माँगा था | अबी नवां मकान बनाया तो बिना टेक्स दिए रहना शुरू किया | बोले तो ये सब भूलने का ही था , इस वास्ते कि ये सब बड़ा आदमी बनने के पेले का है | बड़ा आदमी का ये माँगने का कला होता | माँगने के बाद भूल जाता | मिलता तो बी भूल जाता और न मिलता तो बी भूल जाता | मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा और माईं बाप अपुन का लाईफ एकदम खलास है , नईं मिलेंगा तो बाल बच्चा बी मर जायेंगा , ये मिडिल क्लास और फटीचर क्लास का रोना है | बड़ा आदमी आज माँगा , अबी भूल गया | आज मिला , अबी भूल गया | कायकू , इस वास्ते भूल गया कि कल उसको फिर कुछ नया माँगने का है | बड़े आदमी से बड़ा मंगता और कोई नईं होता |

 

 

अरुण कान्त शुक्ला

Views: 895

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 9:44pm

आदरणीय अरुण कान्त शुक्ला जी,
मज़ा आ गया
दिल बाग़ बाग़ हो गया
पूर्णतः  प्रवाहमान  शब्दावली में  आपने  अपनी लेखनी से जो पैना प्रहार किया है  वह व्यंग्य  का अनुपम उदाहरण है .
बधाई
सच्ची बोलता है...........दिल से बधाई ...बोले तो  लाख लाख बधाई

Comment by Bhawesh Rajpal on June 7, 2012 at 4:36pm
गहरा कटाक्ष  ! घाव करें गंभीर  ! बिलकुल सही तीर मारा है ! 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2012 at 4:02pm

आदरणीय अरुण कान्त जी, बहुत ही करार व्यंग आपने इस आलेख में दिया है, विचार थोडा बिखराव लिए हुए है पर बात बहुत ही गहरी कही है , बधाई कुबूल करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service