For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दरिया तुम्हें कहाँ कहाँ न ढूँढा बादल ने.....

हम तो बादल हैं ...........
बरसे कभी नहीं बरसे.....

सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,
झूमे खेले लहर की गोदी में,
जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,

तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज की,
हम थे एक बूंद,हमारी थी भला क्या औकात,
निकल पड़े हम समंदर से पल में भाप हुए,

तमाम रास्तों से चल के बस भटकते हुए,
लोगों को कहते और खुद को सिर्फ सुनते हुए,
किसी आंगन औ किसी सड़क को भिगोते हुए,

कभी पेड़ों औ कभी बस्तियों के जंगल में,
तलाश करते रहे वो ज़मीं जहाँ था कभी,
एक दरिया जो मेरा घर हुआ करता था,

मगर कहीं न दिखे वो ज़मीन और गगन,
किरन जो मुझ को उठा कर यहाँ तलक लायी,
उसी की आँच ने दरिया को भी सुखा डाला,

अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 20, 2012 at 3:39pm

बहुत ख़ूब सरिता जी! बादल का यही मनमौजी रवैया मुझे बहुत पसंद है| हार्दिक बधाई आपको|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2012 at 1:24pm

vaah boond jo ban gai moti ,boond jo banke bhaap ja mili baadlon ke jhund se ....baut pyaari rachna.

Comment by Sonam Saini on April 20, 2012 at 11:04am

Good morning maim

kamal ka likhti h aap..............!

Comment by MAHIMA SHREE on April 19, 2012 at 10:24pm

अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....

अरे सरिता कब बादल बन बरस कर फिर सरिता में मिल गयी ....पता ही नहीं चला  :)
मन के भावो के रूप अनेक .....बधाई आपको ...

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 19, 2012 at 6:25pm

अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....

ish putri , saadar

aapki har rachna mujhe ek theme deti hai nayi rachna karne hetu. 

कभी पेड़ों औ कभी बस्तियों के जंगल में,
तलाश करते रहे वो ज़मीं जहाँ था कभी,
एक दरिया जो मेरा घर हुआ करता था,

itna kafi hai. badhai. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service