For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,
ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए, बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है.
 
सैर को आये कभी जब, मान उपवन गाँव को,
खेत सूखे देख कर, गर्दन झुकी है, शर्म है.
 
कह दिया गर, 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
ज्ञान मिलता, सब्र और विश्वास रखना धर्म है.
 
कट गए सद्दाम या लादेन, गद्दाफी यहाँ,
तब समझ में आ गया खूं कौम का भी गर्म है!

लूट, हिंसा और लिप्सा से निकलिए शेख जी,

भोर होने आ चली, काली निशा का चर्म है.

 

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on March 10, 2012 at 11:15pm

वाह वाह वाह राकेश जी

मतले में ऐसी कठिन काफिया बंदी से सबसे बड़ा खतरा यही होता है कि आगे चल कर भर्ती के काफिये लेने पड़ते हैं मगर आपने जिस खूबसूरती और सहजता से हर्फे काफिये को हर शेर में निभाया है मन झूम झूम गया

कुछ एक शेर में लय भंग हो रही है उचित सुधार से ग़ज़ल और निखर जायेगी
उचित समझें तो दुरुस्त करें ...

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 8:53pm
श्रीमान प्रदीप सर, हौसला बढ़ने के लिए धन्यवाद.
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 10, 2012 at 6:47pm

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,

ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
करारा व्यंग, यथार्थ चित्रण , बधाई. 
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:52am
माननीया मीनू जी, धन्यवाद. अब देखिए ना कौन सा दल बुरा है, कौन सा अच्छा, हमे कुछ समझता ही नही, तभी तो 'गोंडवी' साहब ने कहा था "काजू भूनी पलेट मे". बिल्कुल भी जै हिंद बोलने का मान नही कर रहा है :(
Comment by minu jha on March 10, 2012 at 11:28am

राकेश जी

सदा की तरह एक अच्छी रचना,कुछ कटू सत्यों को उजागर करती और

खुद से ही सवाल करने को मजबूर करती रचना,बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service