For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों नहीं किसानों की चिंता ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है और अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को ही मानी जाती है। बावजूद, अन्नदाताओं की चिंता कहीं नजर नहीं आती। देश में भूमिपुत्रों की माली हालत बद्तर से बद्तर होती जा रही है और सरकार द्वारा महज नीतियां बनाने की बात की जाती है और जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं, वैसे ही किसानों से जुड़े मुद्दे भी रद्दी की टोकरी में डाल दिए जाते हैं। सरकार की ओर से कृषि बजट को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के बारे में जैसा प्रयास होना चाहिए, वैसा अब तक नहीं हो सका है। यही कारण है कि देश के कई राज्यों में सैकड़ों किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। कृषि ऋण के आगोश में किसानों की पूरी जिंदगी समा जाती है, उसके बाद उनके समक्ष सिवाय मौत को गले लगाने के कुछ नहीं बचता ? हर बरस अन्नदाताओं के मरने के दसियों मामले सामने आते हैं, मगर सरकारी तंत्र का कठोर दिल नहीं पझीसता। सरकार भी ऐसे मूकदर्शक बनी नजर आती है, जैसे देश में कुछ हुआ ही नहीं है। उन्हें लगता है, देश व अवाम की हालत बिल्कुल अच्छी है, भले ही किसानों की आत्महत्या के मामले में इजाफा होता जा रहा हो ? हर साल किसानों की आत्महत्या करने का सिलसिला बढ़ रहा है, जाहिर सी बात है, इसके लिए सरकार की कृषि नीति ही जिम्मेदार हो सकती है।
देश के महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक समेत कई राज्यों में किसानों के मरने के सरकारी रिकार्ड सामने आते हैं, उसके अनुरूप किसानों की आत्महत्या के मामले कहीं अधिक होते हैं। कई बार ऐसा देखने में आता है कि किसानों की आत्महत्या को केवल इसीलिए छुपाया जाता है, सरकार की बदनामी न हो और विपक्ष को घेरने का मुद्दा न मिल जाए। यह बात तो है, जब विपक्ष, सरकार के खिलाफ खड़ा होगा तो फिर सत्ता भी हाथ से जाने का डर, सत्ता के मदखोरों में बना रहता है। इसी के चलते अधिकतर किसानों के दर्द को दबाने की कोशिश की जाती है, मगर फिर भी लोगों की जागरूकता तथा मीडिया की सक्रियता के कारण, सरकार की पोल खुल ही जाती है। बीते दस साल में महाराष्ट्र में सैकड़ों किसानों की ईहलीला समाप्त हो चुकी है और आज कब्रगाह ही उनकी पहचान है। महाराष्ट्र का विदर्भ तो इसीलिए चर्चा में अक्सर रहता है कि वहां किसानों की मौत को गले लगाना आम बात हो गई है, लेकिन सरकारी तंत्र में बैठे अफसरों तथा एसी कमरों में नीति बनाने वाले कारिंदों को इस बात की फुर्सत कहां कि वे किसानों की मुश्किलों व समस्याओं से अवगत होंवे ? सरकार की उंची कुर्सी में बैठे जनता के सेवक की चाहत रखने वाले भी, किसानों की दिक्कतों से इसकदर दूरी बनाते हैं कि उनका जैसे कोई दायित्व ही नहीं है ? उनके द्वारा ऐन चुनाव के पहले किसानों के हितों की हर वो दुहाई देने गुरेज नहीं की जाती, मगर जैसे ही चुनाव खत्म हुआ, फिर कहां का किसान और कौन किसान, कैसा किसान की बात रह जाती है ? किसानों की परेशानियों तथा त्रण के कारण उनके तबाह होते परिवार से ऐसे वोट के भोगी कारिंदे भी सरोकार नहीं रखते। लिहाजा, भूमिपुत्रों की समस्याएं कम होने के बजाय और बढ़ती जा रही हैं।
मध्यप्रदेश में भी किसानों की हितों की चाहें सरकार जितनी भी भलाई करने की वाहवाही लूट ले, मगर किसानों की आत्महत्या की घटना के बाद सरकार की कृषि नीति और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगता है ? सरकार, यदि किसानों के विकास और उन्हें कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास करती तो क्या ऐसा हो सकता है कि किसान आत्महत्या करने मजबूर होंगे ? हमारा तो यही कहना है कि जब किसान ऋण से ग्रस्त नहीं होगा, खेती में अच्छी पैदावार होगी और आय अधिक होगी तो किसानों की निश्चित ही उन्नति होगी और किसी भी सूरत में आत्महत्या के बारे में नहीं सोच सकता, क्योंकि उनका भी परिवार होता है, उनकी जिम्मेदारी होती है। यहां अफसोस इसी बात की है कि सरकार, किसानों के हितों को दरकिनार कर नीति बनाती है, जबकि पूरी अर्थव्यवस्था का खेवनहार यही अन्नदाता होते हैं। बावजूद इनकी फिक्र नहीं की जाती और इसी का परिणाम यह होता है कि ऋण से ग्रसित किसान, खुद तो मौत को गले लगाता ही है, साथ में अपने परिवार के लोगों भी मौत के गहरे कुएं में डूबो देता है। प्रभावित किसान को लगता होगा कि उनके जाने के बाद आबाद परिवार का क्या होगा, वह तो बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएगी। ऐसी कई परिस्थितियों के कारण किसानों की न तो आर्थिक दशा सुधर रही है और न ही उनकी मौत से नाता टूट रहा है। बस, टूट रहा है तो सरकार के आश्वासन से उनका सब्र का बांध ? सरकारी तंत्र द्वारा किसानों को मिलने वाले बीज, खाद का ऐसे बंदरबाट किया जाता है, जिसके चलते किसानों को बाजार से अधिक दर पर ये सब खरीदनी पड़ती है, जिससे खेती करना महंगा पड़ जाता है और फिर किसान कर्ज के बोझ से लद जाता है। इसके बाद जब कर्ज देने वाला, किसानों के घर ऋण वसूली के लिए पहुंचता है तो उनके समक्ष अपनी जमीन बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचता या फिर उन्हें गुलामी झेलनी पड़ती है।
छत्तीसगढ़ में भी किसानों की हालात कुछ अच्छी नहीं है। सरकार भले ही तमाम तरह की नीतियां बनाने का राग अलाप ले, मगर राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड व्यूरो ने प्रदेश में आत्महत्या के जो आंकड़े दिए हैं, वह निश्चित ही सरकार की आंखें खोल देने वाली है। उनके मुताबिक वर्ष 2009 में छत्तीसगढ़ में 1802 किसानों ने आत्महत्या कर ली। जानकार यहां तक कहते हैं कि यह आंकड़ें और भी ज्यादा हो सकते हैं, मगर सरकार की यह कोशिश नहीं है कि कैसे भी किसानों को ऐसे कदम उठाने से रोका जाए, जिससे पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। आंकड़ें के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ की हालत अन्य कई राज्यों से बद्तर है, जहां किसानों की आत्महत्या के मामले बहुत अधिक है। आंकड़ें के इतर देखें तो किसानों की जब भी आत्महत्या की घटना सामने आती है तो फिर पूरा तंत्र उसे छिपाने व दबाने में लग जाता है। प्रदेश में कई बार किसानों की आत्महत्या के मामले में राजनीति गरमाई है, मगर नतीजा सिफर ही रहा, क्योंकि सरकार की कृषि नीति जब तक सुदृढ़ नहीं बनेगी, तब तक भूमिपुत्रों का भला होने वाला नहीं हैं। इतना जरूर है कि किसानों की आत्महत्या के जितने मामले बढ़ेंगे, उससे कहीं न कहीं सरकार की साख भी गिरती है, ऐसे में सरकार को चेतना चाहिए। छग में राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड व्यूरो द्वारा आंकड़े का खुलासा करने के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा के सत्र में इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की और किसानों की आत्महत्या रोकने कारगर नीति बनाने की मांग की गई। हालांकि, प्रदेश में किसानों के हित में कोई बेहतर कार्य नहीं हो सका है, मगर इस बार कृषि के लिए अलग बजट रखने की बात कहकर छग सरकार ने किसानों को कुछ राहत जरूर दी है। मगर यहां भी सवाल कायम है कि क्या किसानों को उनका हक मिल पाएगा ? क्योंकि जिस तरह का बंदरबाट, कृषि यंत्रों, बीज व खाद के वितरण में होता है, उससे सरकार को किसानों का भरोसा जीतने की जरूरत है। नहीं तो वही होता रहेगा, सरकार अपना काम करती रहेगी और चटखोर अपना और बीच में पिसता रहेगा, मजबूर व बेबस किसान। 

राजकुमार साहू
लेखक जांजगीर, छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार हैं। पिछले दस बरसों से पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए हैं तथा स्वतंत्र लेखक, व्यंग्यकार तथा ब्लॉगर हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 098934-94714

                   

Views: 220

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service