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टूट कर बिखरते
हौले हौले संवरते
क्या देखा है आपने?
किसी कविता को,
गिरते-संभलते !!
मैंने देखा है--
अगणित बार..
हृदय-तल पर
शब्दो की उंगलियों का
सहारा पा-
किसी नन्हे शिशु की भांति
डगमगाते हुवे
एक एक कदम उठाते !
फिर आहिस्ता आहिस्ता
वाक्यों के लंबे लंबे डग
नापते !
हाँ देखा है मैंने!
कविता को-
टूटते-संवरते,
गिरते-संभलते,
बनते-बिगड़ते !!

मौलिक एवं अप्रकाशित
(अतुकांत कविता)

Views: 768

Comment

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Comment by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 9:12am
आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम! शुभ प्रभात!
मैं आपसे ये जानना चाहती हूं कि आजकल हिंदी गज़लों का जो दौर है, क्या उनमें बहर की बाध्यता होती है???? और आपके क्या विचार है इस विषय पर?, आप आज़ाद ग़ज़ल , जो बहर के नियम से मुक्त हो ,उसके विरोधी हैं या समर्थक???
सादर!!
Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 6:05pm
आदरणीय डॉ छोटेलाल जी, मेरी रचना आपके खुशी का साधन बन कर धन्य हुई। बहुत बहुत आभार।
Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 6:04pm
आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम!रचना की प्रशंसा एवं आपके स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद! मैं हमेशा आपके टिप्पड़ियों की मुन्तजिर हूँ।
Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 5:58pm
जनाब मोहित मिश्रा जी, शुभ संध्या! बहुत बहुत आभार आपके स्नेह एवं टिप्पड़ी के लिए। आपके शब्द मेरे उत्साहवर्धन में सहायक हैं। पुनः धन्यवाद!
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 11, 2018 at 5:43pm

आदरणीया वृष्टि जी बहुत बेहतरीन अतुकांत दिल खुश होगया बधाई कुबूल कीजिए

Comment by Samar kabeer on October 11, 2018 at 2:42pm

मुहतरमा "वृष्टि" जी आदाब,बहुत सुंदर अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

इस मंच पर महीने में चार आयोजन होते हैं,जिसके बारे में मुख्य पृष्ठ से जानकारी मिल जायेगी,एक आयोजन तो आज रात 12 बजे से चालू होगा,आप उसमें भी हिस्सा लें तो अच्छा लगेगा ।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 10:27am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, प्रणाम!
आपकी प्रतिक्रिया एवं सुझाव के लिए अत्यंत आभार! आपका सुझाव सर्वथा उचित है। कभी कभी इंसान जानकारियाँ होने के बावजूद गलतियाँ कर जाता है। कभी जल्दबाजी में,तो कभी टेक्निकल फॉल्ट। आगे से ध्यान रखने की कोशिश करूँगी।
सादर!
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2018 at 10:19am

हाँ देखा है मैंने!
कविता को-
टूटते-संवरते,
गिरते-संभलते,
बनते-बिगड़ते !!

आदारणीया वी ऍम वृष्टि जी अत्यंत सुंदर अतुकांत रचना है । आपको हार्दिक बधाई । शब्द हुवे को हुए और संभलते सँभलते लिखना मेरे विचार से ठीक होगा । 

सादर ।

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