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बीते लम्हों को चलो .....संतोष

अरकान:-

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन

बीते लम्हों को चलो फिर से पुकारा जाए

वक़्त इक साथ सनम मिलके गुज़ारा जाए

तोड़कर आज ग़लत फ़हमी की दीवारों को

दोस्तो अपने अल्लुक़ को सँवारा जाए

हम तो चल पड़ते हैं बस नाम तुम्हारा लेकर

जिस तरफ़ लेके ये क़िस्मत का सितारा जाए

बाल--पर छीन के आज़ाद कर तू इसको

क़ैद से छूट के पंछी ये मारा जाए

ऐसे हालात में 'संतोष' बहुत मुमकिन है

भूल इक रोज़ समन्दर को किनारा जाए

#संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on September 26, 2018 at 6:00pm

जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on September 26, 2018 at 2:43pm

आदरणीय सन्तोष जी उम्दा भाव के साथ आकर्षक पंक्तियां आपने लिखी है बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

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