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कविता--उम्मीद की कुनकुनी धूप

लो फिर आ गई !
नए साल के स्वागत में
उम्मीद की कुनकुनी धूप
भरोसे की मुँडेर पर
आशा-आकांक्षा की परियाँ भी
धीरे-धीरे उतरेंगी धैर्य के आँगन में
नई सोच का बाज़ीगर
सजाएगा नये-नये सपनें
जमा है जो तुम्हारे पास
अडिग विश्वास की पूँजी
अब उसे खर्च करना होगा
नये साल में मितव्ययिता के साथ
नया साल आहिस्ता-आहिस्ता
आज़माएगा तुम्हें
सावधान !! डरना नहीं
धारण कर लो अपना
फौलादी इरादों वाला कवच
जो तुमने गढ़ा है श्रम से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on December 5, 2017 at 8:07am

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय पवन मिश्र जी ।

Comment by डॉ पवन मिश्र on December 5, 2017 at 6:57am

बहुत खूब,,प्रेरणादायी और बेहद कसी हुई प्रस्तुति। ढेरों बधाई आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

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