For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोमबत्तियाँ (लघुकथा)

सीले हुए ,पुराने अधखुले तुडेमुडे गत्ते के डिब्बों में बन्द मोमबत्तियाों को दुकानदार ने झींकते हुए बार निकाला और मन ही मन जाने क्या-क्या खुदबखुद बडबडाने लगा । उसे ऐसे परेशान होता देख खुले डब्बे के मुँह से झाँककर एक मोमबत्ती बोली,'बेचारा!' फटाक से दूसरी बोली,'क्यों तुम्हें अपने ऊपर तरस नहीं आता ! कभी सोचा भी है कि कितने साल हो गए हमें इस मौसम में बाहर आते और मौसम खत्म होने पर बिना बिके अन्दर जाते।' नहीं याद वे दिन जब हमारी ज़रूरत बहुत थी, शान बहुत थी। हर दिन हमारा प्रयोग हुआ करता था और हम कभी किसी बच्चे के गृहकार्य में मदद करती थीं तो कभी किसी को खाना खाने में ,कभी किसी को अंधेरे में चीज़ ढूंढने में और तभी एक तीसरी मोमबत्ती खिलखिला कर बोली ,'कभी कभी तो किसी को शौचालय तक...' 'कुछ शर्म करो!' इतने में ही एक भारी भरकम सी मोमबत्ती ने उसे डाँटते हुए कहा ! 'मगर आपके तो आज भी दिन हैं मौसी !कोई ना कोई खरीद ही लेता है आज भी।' हमारी हालत तो पस्त है कुछ ही साल पुरानी बात तो है कितनी रौनक किया करती थीं हम दिवाली पर गोवर्धन पर, और, "बच्चों के पटाखे कब पूरे हुए हमारे बिना" किसी ने बीच से सुर साधते प्लास्टिक के अन्दर से कहा। "और नहीं तो क्या घर के कोने कोने में हम ही तो उजास फैलाती थीं। कभी - कभी तो प्रेयसी के रूप को चमकाने में भी हमारा ही हाथ होता था", एक ने अपने एक ही तार में पिरोए कई हिस्सों को संभालते हुए कहा । एक और सिसकते आह भरते बोली,"आज तो हमारी ज़रूरत ही नहीं है किसी को भी ।" तभी प्लास्टिक की शैया में अभी तक चुपचाप पड़ी उन सबकी बातें सुनती एक लम्बी सी सफेद मोमबत्ती जिस पर समय ने पीलापन चढ़ा दिया था आक्रोश से बोली," होती है ना आज भी हमारी आवश्यकता,
किसी अबला पर घोर अत्याचार होता है तब,किसी देश में प्राकृतिक प्रकोप होता है तब , कहीं आतंकवादी हमला होता है तब या किसी अच्छे व्यक्ति का परलोक गमन हो तब" और लगभग चीखते हुए फिर बोली,"पता नहीं किसने व क्यों ये रवायत बनाई ?" और पलट कर फिर सबसे चिल्ला कर बोली ,"अगर हम जैसी बनना चाहती हो तो जाओ , फिर मोम बनो ,सफेदा चढाओ और बन जाओ हम जैसी तुम्हारा भी कुछ तो प्रयोग होगा और एसा कह वह फूट-फूट कर रोने लगी।"

.
अप्रकाशित व मौलिक

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 12, 2015 at 2:44pm
कथा का केन्द्रीय विचार बहुत अच्छा है और नया है बधाई आपको ममता जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 2:43pm

आदरणीया ममता जी, मैं प्रस्तुत रचना में और कसावट की बात कह रहा था. अभी ये लघुकथा नहीं बल्कि किस्सागोई अधिक हो गई है. इसे और कसावट दी जाए तो बढ़िया लघुकथा निकल कर आएगी. जैसे-

 

-----------------------------------

 

पुराने गत्ते के डिब्बे में बन्द मोमबत्तियों को दुकानदार ने खीझते हुए निकालाकर बड़बड़ाने लगा तो उसे परेशान होता देख डिब्बे की मोमबत्तियों में सरगोशियाँ होने लगी।

“बेचारा....”

“क्यों तुम्हें अपने ऊपर तरस नहीं आता? कभी सोचा भी है कि कितने साल हो गए हमें इस मौसम में बाहर आते और मौसम खत्म होने पर बिना बिके अन्दर जाते"

“कभी हमारी भी शान थी कितने घरों में खाना बनाने से खिलाने तक साथ दिया, कितने ही बच्चों का होमवर्क कराया. कितनी चीजें खोजने में मदद की....कभी कभी तो किसी को शौचालय तक.......”

“कुछ शर्म करो...”  - इतने में ही एक भारी भरकम सी सफ़ेद मोमबत्ती ने उसे डाँटते हुए कहा।

“मगर मौसी, आपको आज भी कोई न कोई खरीद ही लेता है... हालत तो हमारी पस्त है. कुछ ही साल पुरानी बात तो है हम त्योहारों की रौनक हुआ करती थीं”

"सही कहा लेकिन आज तो हमारी ज़रूरत ही नहीं है किसी को भी।"

रंगीन मोमबत्तियों की बातें सुनकर भारी भरकम सी सफ़ेद मोमबत्ती का आक्रोश बढ़ गया था।

"होती है न आज भी जरुरत....तब, जब किसी अबला का बलात्कार हो..... आतंकवादी हमला मासूम मारे जाए .... कोई भला व्यक्ति का मर जाए.......पता नहीं किसने ये रिवायत बनाई?"

“मगर मौसी .... “

"मगर क्या ?....अगर हम जैसी बनना चाहती हो तो जाओ, फिर से मोम बनो ,सफेदा चढ़ाओ और बन जाओ हम जैसी...”

और वह फूट-फूट कर रोने लगी।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 2:23pm

सच कहा मिथिलेश जी ने बेहतरीन लघु कथा बन सकती है प्रभावशाली पंच लाइन के साथ | आपको इस कथानक व् भाव के लिए बहुत बहुत बधाई  ममता जी | लघु कथा के शिल्प  की जानकारी ओबिओ के समूह में ही मिल जायेगी --http://www.openbooksonline.com/group/laghukatha

Comment by Mamta on August 12, 2015 at 12:58pm
आदरणीय मिथिलेश जी,धन्यवाद! अगरआप इस बात को कुछ और स्पष्ट कर दें तो मैं अपनी अगली लघुकथा में इस बात का अवश्य ही ध्यान रखूँगी तथा यथासंभव इसमें भी बदलाव लाने की कोशिश करूँगी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 12:45pm

आदरणीय ममता जी, कथानक बढ़िया है किन्तु रचना कसावट की कमी से लघुकथा होते होते रह गई. इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service