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बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।
बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।

बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।
हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।

दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।
होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।

रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।
दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।

आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।

व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर बात ।
प्रीतम संबंधी सखा, कागज़ कलम दवात ।६।

अधरों की रूठी हँसी, हिस्से आई मात ।
सावन देती हैं हरा, नैनों की बरसात ।७।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 9:19pm

अधरों की रूठी हँसी, हिस्से आई मात ।
सावन देती हैं हरा, नैनों की बरसात

बहुत बढ़िया 

बधाई 

सस्नेह 

Comment by Meena Pathak on January 31, 2014 at 4:45pm

बहुत सुन्दर ..हृदयस्पर्शी दोहे ...बहुत बहुत बधाई प्रिय अरुन जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 3:54pm

वाह.. दोहे तो सधे हुए हैं .. तनिक और साधिये.. बहुत-बहुत बधाई भाई..

और काग़ज़ कलम दवात सुनने में तो बड़े अच्छे लगते हैं..

लेकिन हमें .. हम सबको कितने वर्ष हुए इन्हें हाथों से छुए हुए .. कुछ याद भी है .. :-)))

चला गया जो दौर वो, रह-रह करता हौण्ट ..

कागज मोनीटर हुए, अक्षर सारे फ़ॉण्ट .. .. 

:-))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 27, 2014 at 3:43pm

विछोह के दर्द को बहुत मर्मस्पर्शी दोहों में ढाला गया है 

शुभकामनाएं प्रिय भाई अरुण जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 27, 2014 at 10:35am

अजय भाई दोहे आपको पसंद आये सार्थक हुए बहुत बहुत धन्यवाद आपका स्नेह बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 27, 2014 at 10:34am

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अजय कुमार सिंह on January 26, 2014 at 2:27am

आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ||

व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर बात ।
प्रीतम संबंधी सखा, कागज़ कलम दवात ||

भावप्रधान दोहावली के हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय.

Comment by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:33am

वाह !! प्रिय अरुण बहुत सुंदर दोहावली बधाई । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 11:04am

आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने इंगित किया है उसपर विचार करता हूँ स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 10:47am

आदरणीय अखिलेश सर दोहे आपको पसंद आये संतोष हुआ, जैसा आपने कहा उस पर विचार करके मैंने यह लिखा था हो सकता है मैं गलत हूँ सुधारने का प्रयास करता हूँ.

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