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खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।

चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।

सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:48pm
आदरणीया वेदिका दीदी! आपने अनुज को उत्तम प्रबोध दिया, जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:46pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी! आपने कथा को अपना आशीर्वाद प्रदान किया, अनुज कृतकृत्य है।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:45pm
आदरणीय गिरिराज जी! आपने लघुकथा को सराहा, अपने आशीर्वाद से कृत्कृत्य किया, मैं आपका हृदय से आभारी हूँ।
Comment by Shubhranshu Pandey on August 31, 2013 at 5:13pm

आदरणीय विध्येश्वरी प्रसाद जी, एक कथन है,  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अब वो केवल प्राणी है. समाजिकता कहीं खो गयी है. इसी बात को शानदार ढंग से रखने के लिये बधाई. कुत्ते अपने काम को आज तक बखुबी कर रहे हैं. 

गीतिका जी की बातों से सहमत हूँ कि पहली लाइन की उतनी आवश्यकता नहीं थी. 

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 5:04pm

सच! हर इन्सान अपने में ही मस्त है, कहीं कुछ भी हो , कोई मतलब नहीं, बहुत बढ़िया लघुकथा , हार्दिक बधाई आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 3:15pm

अपने अपने घरौंदों में मस्त आदमी कितना आत्मेंद्रित है.. कि ऐसे संकेतों को जानते बूझते भी नज़रंदाज़ करता है.. समाज में पड़ोसियों के व्यवहार में अतिक्रमण कर चुकी इस उदासीनता को सुंदरता से प्रस्तुत किया है.

हार्दिक बधाईप्रिय अनुज विन्ध्येश्वरी जी 

Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 2:24pm

आदरणीय त्रिपाठी जी अच्छी कथा बधाई स्वीकार करे 

Comment by वेदिका on August 31, 2013 at 1:07pm

बहुत अच्छी कथा हुयी|  मेरे विचार से अगर पहली लाइन से लाल मोहन के नाम को हटा दिया जाता, और सीधे आखिरी में लाल मोहन के चेहरे के भाव और भी ज्यादा विद्रूप होते| तो कथन और भी प्रभावशाली होता| इसे सिर्फ मेरा व्यक्तिगत विचार ही समझिये| 

बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:59pm

आदरणीय विनय जी समाज के कटु सत्य  को दर्शाती आपकी कथा प्रभावशाली है । आपको बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 31, 2013 at 11:01am

विन्ध्येश्वरी भाई ! बहुत सही और बहुत कड़्वी सच्चाई आपने लघुकथा मे उजागर किया है ! बधाई !!

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