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फासलों की 

हर पर्त को चीरते 

चंद शब्द...

जिनका चेहरा,

कभी दिखाई ही नहीं देता..

आखिर देखूँ भी तो क्यों ?

लुका छिपी में उलझाते मुखौटे  !

जिनकी आवाज,

कभी सुनायी ही नहीं देती..

आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?

कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़  !

जिनके अर्थ,

कभी बूझने नहीं होते..

आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?

सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !

जबकि,

हृदय गुहा में 

अंकित होते हों..

मुखौटों की कृत्रिमता से 

सदा सर्वदा अस्पृष्ट..

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये

उसके चंद शब्द !!

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Comment

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Comment by shubhra sharma on August 19, 2013 at 10:53pm

आदरणीया डॉ प्राची जी ,भावों से भरी,यथार्थ चित्रण किया है आज के कृत्रिम , बनाबटी होते लोगों की सोच का  ,बहुत खूब  ,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:21pm

आ० राजेश कुमार झा जी 

अभिव्यक्ति की मूल भावना और शैली पर पर आपसे सराहना मिलना लेखन के प्रति आश्वस्ति का कारण है..

अभिवियक्ति के पृष्ठ में सन्निहित जीवन दर्शन पर कुछ शब्द कहने के लिए धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:18pm

अभिव्यक्ति को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ० बृजेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:15pm

आ० डी०पी० माथुर जी, जितेन्द्र जी, विवेक मिश्र जी, डॉ० आशुतोष जी, रविकर जी, सुलभ जी, डॉ० नूतन जी ..

अभिव्कति पर आपकी सराहना और प्रोत्साहन लेखनी के लिए सदा ही ऊर्जा का कार्य करते हैं 

आप सबका हृदय से बहुत बहतु आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:11pm

सराहना हेतु हार्दिक आभार आ० केवल प्रसाद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:10pm

अभिव्यक्ति के भाव सराह प्र्त्साहित करने के लिए आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेई जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on August 19, 2013 at 5:58pm

आपकी अतुकांत कविता भी आपके छंदों की तरह अपना अलग अंदाज रखती है, कृत्रिमता को तिलांजलि देना और उसे खुलेआम यूं ललकारना कि तुम्‍हारी आवाज मुझे नहीं सुननी, ये वही कर सकता है जिसके भीतर जीवन का शाश्‍वत दर्शन कूट-कूट कर भरा हो । अभिराम लेखनी को सादर नमन

Comment by बृजेश नीरज on August 19, 2013 at 1:29pm

खुद मुझे अब शब्द चाहिए, इस रचना पर टिप्पणी के लिए!
आपको नमन!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 12:49pm

प्रिय अरुण शर्मा 'अनंत' जी 

अभिव्यक्ति आपको पसंद आई ये मेरे लिए बहुत संतोषदायी है 

आपके द्वारा किये गए प्रश्न //दी एक गुजारिश है क्या मुझे भी इतनी ही सुन्दर अतुकांत कविता लिखना सिखाएंगी..?// का तो एक ही उत्तर है..

यही इसी मंच पर ही मैंने भी सीखा है....क ख ग से ही..और सीख रही हूँ.... हम सभी एक दूसरे की रचनाओं को पढ़ कर, नयी नयी शैलियों को देखते हैं ..सीखते हैं.... अच्छे लेखन के लिए सजग पाठन सबसे ज़रूरी है.और आपकी संलग्नता तो इसके प्रति सदा से आश्वस्त करती रही है 

आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 12:37pm

अभिव्यक्ति का शब्द संयोजन और भावदशा पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपको सादर धन्यवाद आ० विनीता शुक्ला जी  

कृपया ध्यान दे...

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