For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साधन मात्र (लघुकथा)

जब भी राकेश देर रात तक काम करते हैं रानी कितना ख्याल रखती है | जब तक वो  काम करते हैं रानी दोनों बच्चों को मुंह पर उंगुली रख कर चुप कराती रहती है | बीच-बीच में उनको चाय बना के दे आती है | राकेश भी उसे बुला के सामने बैठा लेते हैं –“तुम सामने रहती हो तो काम जल्दी हो जाता है” ये बोल कर कितना लाड दिखाते हैं | जब तक वो काम करते रहते है रानी भी जागती रहती है फिर सुबह जल्दी उठ कर बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज देती है | बच्चे अगर जोर से बोलते हैं तो उन्हें चुप करा देती है “ पापा रात देर से सोये है शोर मत करो “  बच्चे भी चुप हो जाते हैं | राकेश ९ बजे सो कर उठते हैं तब तक उनका नाश्ता और लंच दोनों तैयार कर के दे देती है और वो ऑफिस चले जाते हैं |
 हर सम्भव ख्याल रखती है, उनके जूते,कपड़े,उनकी सेविंग किट यहां तक कि उनकी फाईलें भी वही संभालती है | पर जब भी वो कुछ पढ़ने या लिखने बैठती है तो राकेश को जाने क्या हो जाता है और उनका व्यवहार बहुत रूढ़ हो जाता है |
आज भी वो सब काम खत्म कर के अपनी कविता लिख रही थी तो राकेश ने कितनी जोर से डांट दिया –“जब देखो ये फालतू का काम ले के बैठ जाती हो मेरे लिए तो समय ही नही तुम्हारे पास, लाइट बंद करो सोऊँगा नही तो कल ऑफिस में सिर दर्द होगा तुम्हे क्या घर में पड़ी सोती रहोगी”|

रानी अपनी डायरी और कलम समेटती हुई दुखी मन से उठती है और आल्मारी में रख देती है | एक यही काम तो वो खुद की खुशी के लिए करती है बाकी सारा दिन तो सब के लिए जीती है और बस इतनी सी बात राकेश को बर्दास्त नही होती |
रानी लाइट बंद कर के लेट जाती है और अपने आँसू पोंछते हुए सोचने लगती है कि उसने तो कभी नही कहा – मुझे माइग्रेन है मैं देर रात तक तुम्हारे साथ जागती हूँ तो अगले दिन मुझे माइग्रेन का अटैक पड़ जाता है | मै किस तरह दवा खा के घर का और बच्चों का काम करती हूँ तुम्हे क्या पता तुम तो शाम को आते हो और मेरा सूजा हुआ चेहरा देखते हो तो यही कहते हो कि - " अभी सो कर उठी हो क्या जो तुम्हारा चेहरा इतना सूजा हुआ है" अब मैं तुम्हे क्या बताऊँ कि मेरा चेहरा सोने से नही माइग्रेन की वजह से सूजा हुआ है | अंघेरे में रानी अपने आँसू बार बार पोंछ लेती है इतने में राकेश का भरी भरकम हाथ उसके उपर आ जाता है और वो उस हाथ के नीचे अपने आप को दबा हुआ महसूस करती है | मैं क्या हूँ राकेश के लिए सिर्फ उनकी जरूरतों को पूरा करने का एक साधन मात्र बस ….और कुछ नही |

राकेश जान ना जाएं इस लिए रानी धीरे से अपनी आँखों को पोंछ के सुखा देती है ||


मौलिक व अप्रकाशित 

मीना पाठक 



 

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on March 5, 2013 at 6:36pm

सही कहा आप ने राजेश कुमार जी .. हार्दिक आभार

Comment by Meena Pathak on March 5, 2013 at 6:35pm

 कहानी पसन्द करने के लिए सादर आभार राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 5, 2013 at 4:39pm

ये बातें कई घरों में होती है जिसकी मूल वजह है एक दूसरे की रूचि-अरूचि को जाने बिना प्रतिक्रिया देना, दरअसल बात वहीं घूम फिर कर आ जाती है कि गृहस्‍थी की गाड़ी दोनों पहियों से ही चलती है ।

Comment by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 2:22pm

क्या मार्मिक चित्रण किया है आपने .आदरणीया मीना जी ......बहोत खूब ....मुझे मेरी कुछ पन्तियाँ याद आ गयी ............

छुपाये ह्रदय में अदृश्य घाव ,
भीर भी सख्त नयनों के भाव 
इतना दर्द झेल रही नारी ,
फिर भी दिखा रही सरल स्वभाव !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
4 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service