For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सड़क के मुख्य मार्ग से २१ कि.मी. कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाती जीप चली जा रही थी।  जीप में पीछे बैठे कर्मचारी ने मुझसे कहा साहब २ कि.मी. बाद सुनारिया गांव है, वहाँ का एक किसान पिछले ६-७ साल से  नहीं मिल रहा है, जब देखो, तब झोपड़ी बंद मिलती है, आज मिल जाये, तो उसे निपटाना है,बहुत पुराना कर्ज बाकी है,मैंने कहा कितना बाकी है ? वो बोला  बाकी तो ५००० है, पर ७-८ साल का बाकी है। 

तभी जीप सुनारिया पहुँच गई , दो-तीन कर्मचारी तेजी से उतरे और झोपड़ी की तरफ लपके पर झोपड़ी बंद थी , दरवाजे में कांटे रखे हुये थे ,ताकी कोई जानवर अंदर ना जा सके , आसपास का सारा कचरा झोपड़ी के आसपास जमा हो गया था , बेतरतीब कवेलू बयां कर रहे थे की झोपड़ी ६-७ सालो से खाली है।  

मैंने कहा की तडवी (मुखिया) को बुलाओ , तुरंत कर्मचारी तडवी के टापरे की और गये और उसे बताया की साहब आये है बुला रहे है , वो सिर पर साफा बाँध कर खटिया ले कर हाजिर हो गया।  राम-राम साब कहकर पेड़ के नीचे बकरी जो धुप से बचने के लिए बैठी थी , उन्हें भगाकर खटिया लगा दी. बैठो साब।  मैंने कहा क्यों तडवी ये सकरु  कहाँ है ? वो बोला अरे साब सकरु  ,उसकी लुगाई  के साथ ६-७ साल पहले भाग गया।  और उसका लड़का? लड़का तो इनके पहले चला गया , गाँव में एक आदमी को किसी ने मार दिया था, पुलिस को सकरु  के लडके पर शक था , पुलिस पूछताछ कर रही थी तभी लड़का भाग गया , फिर पुलिस ​सकरु  को परेशान करने लगी ,तो सकरु  भी औरत को लेकर भाग गया ,तब से इनका कोई पता नहीं साब।  और इनकी जमीन कौन जोत रहा है? कौन जोते साब सब खाली पड़ी है,ऐसे ही।  

देख तडवी सकरु  ने सहकारी समिति से ८ साल पहले कर्ज लिया था जो आज तक नहीं भरा , अब मेरे पास उसकी कुर्की के आदेश है , वो आये तो खबर करना और कर्ज जमा करने का उसे कहना।  हाँ साब बराबर उसे समझाऊंगा और आयेगा तो खबर करूंगा। ऐसा कहकर हम आगे के गाँवों में संपर्क के लिये चल दिये। 

दूसरे साल हम मार्च के महीने में फिर वसूली अभियान पर थे।  जैसे ही सुनारिया गांव पहुंचे , कर्मचारी बोला , साहब शायद सकरु  आया हुआ है ,झोपड़ा खुला हुआ है। हम सीधे सकरु  के झोपड़े पर पहुंचे , बाहर एक खाट पर एक वृद्ध ,जिसकी सिर्फ आँखे दिखाई दे रही थी , बाल बिखरे थे , दाड़ी बड़ी हुई थी , एक मैला ,कुचेला साफा खाट के एक पाये पर लटका हुआ था , खाट के नीचे एक लोटा ,एक मिट्टी का पात्र , चिलम और कुछ कण्डो की राख थी ,जो शायद रात को जलाये गये होंगे। मैंने पूछा तेरा नाम सकरु  है ?उसने सिर हिला कर हाँ किया , मैंने कहा सोसायटी से कर्ज लिया था ?उसने आँख के इशारे से अनभिञता जाहिर की. मैंने वसूली टीम में शामिल पुलिसकर्मी  को बुलाया, तो पता चला की वो जीप से उतरकर किसी आदिवासी से बीड़ी मांग कर पी  रहा था और अभी-अभी २ टापरों की तरफ गया है ,शायद कच्ची दारु तलाश करने गया होगा। तभी एक महिला अधेड़ उम्र की ,मरियल सी,खिचड़ी बाल,झोपड़े से बाहर आई और राम -राम कहकर दरवाजे ​के कोने में बैठ गई।  मैंने पूछा तू इसकी औरत है? वो बोली होऊ साब। सोसायटी का क़र्ज़ क्यों नहीं भरते हो? वो बोली मैं क्या जानु साब! मेरे को नहीं मालुम। मैंने कहा क्यों, तुझे क्यों नहीं मालूम ? वो बोली मैं तो दूसरी हूँ , पहले वाली तो मर गई , मैं इसकी साली हूँ।  मैंने कहा चलो तुम्हारी कहानी छोड़ो ,पहले पैसा भरो , उसने कहा अभी  तो  कुछ नहीं है साब।  इस पर मैंने अपने कर्मचारियों को झोपड़े के अंदर जाने को कहा ​,की देखो जप्ति योग्य जो भी सामान हो बाहर लाओ।  थोड़ी देर में कर्मचारी ने बताया की साहब घर के अंदर दो बोरे गेहूं भरे पड़े है।  मैंने कहा बाहर निकालो बोरे ,तुरंत कर्मचारी ने खींचकर बोरे बाहर पटक दिए।  बिखरे दाने पर आस-पास के मुर्गे,मुर्गी टूट पड़े , तो महिला ने मुर्गे,मुर्गियों को भगाया और कहा की साब आप इस गेहूं को बेचकर कर्ज जमा करते हो तो कर दो, पर ऐसा नुकसान मत करो , मैंने बड़ी मेहनत से इन्हे इकठ्ठा किया है , तो मैंने कहा की ऐसी कौन सी मेहनत की तूने इन गेहूं के लिए ?

वह बोली साब ७ साल पहले ये मेरा आदमी पुलिस के डर से अपनी लुगाई के साथ ग्वालियर भाग गया।  मेरे आदमी ने मुझे ५ साल से छोड़ रखा था इस कारण में भी इनके साथ ग्वालियर मजदूरी पर चली गई।  हमको एक खदान में मजदूरी का काम मिल गया। एक दिन अचानक खदान के धंसने से मेरी बहन उसमे दब गई और उसकी मौत हो  गई।  उसकी मौत के बाद मैं इसके साथ पत्नी बनकर रहने लगी।  २ साल बाद इसकी तबियत ख़राब रहने लगी।  सरकारी अस्पताल में जाँच कराई तो डॉक्टर ने बताया की इसे टी.वी. हो गई है।  शुरू मैं तो अस्पताल से मुफ्त में दवा मिलती रही, पर बाद में मुफ्त दवा बंद कर दी और मैं मजदूरी कर इसका इलाज़ भी कराती और पेट भी भरती।  अभी ८ माह पहले डॉक्टर ने जवाब दे दिया की अब इसका कोई भरोसा नहीं है , कभी भी कुछ भी हो सकता है , मैं अकेली थी साब डर गई, उसी दिन इसे लेकर बस से यहाँ ले आई।  यहाँ हमारी जमीन साब दूसरों ने हड़प ली थी , मैंने कहाँ कौन दूसरे? वो बोली, ये तडवी साब , इसने हमारी जमीन हथिया ली।  मैं पटवारी ,तहसीलदार ,ग्राम पंचायत और  सरपंच सब के पास फ़रियाद लेकर गई पर सबने भगा दिया।  ये आदमी तो खाट से उठ नहीं पाता मैं अकेली कहाँ-२ दोडु ? तहसीलदार कहता है तेरे नाम का तो कूपन तक नहीं है , तू सकरु  की औरत है ,क्या सबूत है?मेरे पास कुछ नहीं था साब फिर मैंने मेरी टापरी के पीछे के बाड़े में गेहूं लगाने का मन बनाया , में बाड़ा जोतने के लिए तडवी के पास बैल मांगने गई लेकिन उसने बैल देने से इंकार कर दिया।  उसके डर से गाँव के भी किसी आदमी ने बैल नहीं दिये , तो मैंने मेरे हाथो से जमीन खोद-२ कर बाड़ा तैयार किया।  फिर राशन की दूकान से १५ किलो गेहूं लेकर आई।  मैंने कहा तेरे पास तो कूपन ही नहीं है ,१५ किलो गेहूं कैसे ले आई ?वो बोली साब बाटनिया (सेल्समैन) को ५० ऊपर से दिए तो उसने गेहूं दे दिये।  फिर गेहूं के दाने बाड़े में बिखेर दिये और २ कि.मी. दूर  हैण्डपम्प से रोज पानी ला ला कर गेहूं को पिलाया , एक दिन गेहूं जमीन के उपर दिखने लगे , फिर उसमे बाली आ गई और पांच दिन पहले गेहूं पक कर तैयार हो गये।  मैंने हँसिये से गेहूं काट कर सुखाये और हाथो से  मसल-मसल के गेहूं निकाले , एक -एक दाना  बिन कर ये दो बोरे गेहूं तैयार कर आज ही घर में रखे थे और आप आ गये।  आप ले जाओ साब।  मैंने कहा की तुम क्या खाओगे? वो बोली भगवान जैसा रखेगा वैसे रहेंगे। मैं उसका वाकया सुन के हतप्रभ रह गया , ये मैंने कौन सा अपराध कर दिया , मैंने तुरंत बोरे  कर्मचारियों से कहकर अंदर रखवाये ,में बुत बन गया था चुपचाप जीप में बैठकर शहर को लोट आया।  ऐसे अनेक आदिवासी जिनके पास जमीन कम है वो आज भी इसी तरह का जीवन जी रहे है , शासन, प्रशासन के दावे खोखले दिखते है , वहां, न इन आदिवासियों के साथ कोई दिखता है और न किसी का विकास दिखता है

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rajendra kumar dubey on June 10, 2016 at 6:59pm
आदरणीय डॅा विजय शंकर जी एवं सम्माननीय सौरभ पान्डेय जी देरी से आभार व्यक्त करने के लिए क्षमा प्रार्थी हू आपके सुझावों को हिदायत की तरह लूंगा तथा आगामी रचना में आपकी अपेक्षाओ पर खरा उतरुंगा एसा विशवास है आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 1:42pm

कहानी अच्छी और प्रभावकारी है आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी. सामाजिक भयावहता उभर कर सामने आयी है. इस हेतु आप बधाई के पात्र हैं. यह अवश्य है कि आप तनिक और संयत हो कर रचनाओं को प्रस्तुत किया करें. तमाम टंकण त्रुटियाँ और कई जगह सटीक पंक्चुएशन की कमी संप्रेषणीयता के आड़े आ रही हैं. विश्वास है, अगली बार से आपकी संयत कोशिश से हम लाभान्वित होंगे. 

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 2:10am
बात तो सही है , सच्चाई भी यही है , पर आज की नहीं , न जाने कब की और कब से। झेल रहा है आदमी। आपकी कहानी एक वृत्तांत सी लगती है। इन समस्याओं का कहीं कोई समाधान दीखता भी नहीं। सम्प्रति इस सारगर्भित प्रस्तुति हेतु आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी , बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
32 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
40 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
1 hour ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service