For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ASHVANI KUMAR SHARMA's Blog (36)

एक ग़ज़ल

अब दागों की ही रवायत हो गई
ज़िन्दगी गोया तवायफ हो गई
 
अब वफ़ा ही शूल सी चुभने लगी 
आप की जब से इनायत हो गई 
 
है मुहब्बत कह दिया चौराहे पर 
जाने किस किस से अदावत हो गई
 
जो हुए गाफिल तो भुगतेंगे जनाब 
आप को कैसे शिकायत हो…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 25, 2011 at 10:00pm — 3 Comments

ek ghazal

 
खोट के सिक्के चलाये जा रहे है 
लोग बन्दर से नचाये जा रहे है
 
आसमां में सूर्य शायद मर गया है
मोमबत्ती को जलाये जा रहे है
 
देखिये तांडव यहाँ पर हो रहा है
रामधुन क्यों गुनगुनाये जा रहे है
 
जो पिघल कर मोम से बहने लगे है
लोग वो काबिल  बताये जा रहे है
 
आप को वो स्वप्नजीवी मानते है
स्वप्न अब रंगीन लाये जा रहे…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 22, 2011 at 10:18pm — 1 Comment

ek ghazal

 
हिल  गए  आधार  है  शायद  जमीं  के
 ध्रुव तलक लगता नहीं काबिल यकीं के
 
खुश्क धरती का कलेजा फट गया है 
है नहीं आसार अब बाकी नमी के 
 
अब मकां न है नजर आती दीवारें 
लोग रहते है यहाँ लगते कहीं के 
 
रोज़ खाली हाथ लौटा उस गली…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 8:54pm — No Comments

ek geet

 
 
कीचड दे बौछार
             ठंडी ठंडी पवन नहीं है
              नर्म गर्म वो बदन नहीं है
              उजड़े नीद निहारे बैठी 
                          - एक अकेली डार
               गंगा ही जब उलटी बहती
               नजर एक कमरे तक रहती
               जाने कैसे गणित कहे है
                               -दो और दो…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 10:34am — 2 Comments

दो छोटी कवितायेँ

 एक 
और तभी होता है ये आभास 
गिन गिन कर लेते है
एक एक
श्वांस 
तोड़ कर पिंजड़ा 
उड़ता है एक पंछी 
और छाया मंडराती है
यहीं आसपास 
 
दो
 
एक…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 10:30am — 4 Comments

ek ghazal

 
कब गुलाब की होगी धरती 
सरकंडों  की   भोगी  धरती
  
अब  कोई  उम्मीद  नहीं  है 
शस्य-श्यामला होगी धरती
 
आदमजात कहो क्या कम है
और भक्ष्य क्या लोगी धरती
 
बच्चे कच्चे भूख मरे है
बनती कैसे जोगी धरती
 
लाखों वैध हकीम हुए है 
पर रोगी की रोगी धरती…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 18, 2011 at 9:12pm — No Comments

ek ghazal

 

 

एक ग़ज़ल 

 

धुंधले हैअक्स सारे,कुछ तो दिखाइये

इस  बोदे  आईने  को  थोडा  हटाइये

 

सावन के आप अंधे,दीखेगा ही हरा

 

रुख दूसरे के जानिब चेहरा घुमाइये

 

अरायजनवीस लाखों जीते तो मिल गये

 

अब हार की सनद ये किस से लिखाइये

 

कैसे करेंगे अब हम खेती गुलाब की 

गमलों की है रवायत,कैक्टस उगाइये 

 

खाली हुई चौपाल और उजड़ा हुआ अलाव 

हुक्का है…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 1:09am — 1 Comment

dohe rajasthani mati ke

 

आंधी थी जो कर गयी,आँगन आँगन रेत

आई थी तो जायेगी,कहाँ रेत को हेत 

 

रात चांदनी दूर तक टीलों का संसार 

अळगोजे*की तान में बिखरा केवल प्यार 

 

हडकम्पी जाड़ा पड़े,चाहे बरसे आग 

सहज सहेजे मानखा माने सब को भाग 

 

सतरंगी है ओढ़नी,पचरंगी है पाग

जीवन चाहे रेत हो मनवा खेले फाग 

 

सुबह हुई कुछ और था,सांझ हुई कुछ और

आदम  की नीयत हुआ,इन टीलों का तौर   

 …

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 12:49am — No Comments

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल 
 
बात मुझ से ये  कर  गया  पानी 
ये ना सोचो कि डर गया पानी
 
वो   हुनरमंद   है    ज़माने    में 
जिन की आँखों का मर गया पानी
 
हुई जो हक की बात महफ़िल में
जाने किस का उतर गया पानी
 
कल जो सैलाब था ज़माने पर 
अब समंदर के घर गया पानी
 
दौर  के  तौर  को  बदल  देगा 
जब भी सर से गुजर गया…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 2:30pm — 10 Comments

चिड़िया से

चिड़िया तुम चहचहाइ

पौ फटने पर 

तुम्हारे चहचहाने पर ही है 

दारोमदार पौ फटने का.

अँधेरे को फाड़ कर निकलता

सिन्दूरी सूरज का गोला 

चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का

तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है

जीवन में रंग 

पेड़ों को पराग 

गेंहूँ को बाली

आदमी को भरा धान का कटोरा 

मिला है तुम्हारे ही गीतों से 

जानता हूँ आदमी आजकल 

धान का कटोरा नहीं 

बन्दूक की गोली लिये

ढूँढता है तुम्हे 

पर…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 12, 2011 at 10:30pm — No Comments

andhere ki chikh se

अँधेरे की चीख से 
 
रोटियों से यहाँ भली गोली 
इसलिये है नहीं टली गोली
 
ग़ज़ब कि आप को लगी कैसे 
ये हवाओं में थी चली गोली
 
अमन औ चैन बरक़रार रहा 
आप को किसलिये खली गोली
 
आजकल वादियों में गूंजे है
बूट, खाली गली , गोली
 
आपका हक बड़ा जो हक में है
सिर्फ बन्दूक क़ी नली गोली
 
गंध बारूद क़ी है…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 11, 2011 at 10:39pm — No Comments

एक ग़ज़ल अँधेरे की चीख से

 
 ख़त्म विश्वास सा लगे लोगो 
ज़िन्दगी हादसा लगे लोगो
 
हाल जिस का भी पूछ कर देखो 
वही उदास सा लगे लोगो
 
आदमी एक वो जो पगलाया
अनबुझी प्यास सा लगे लोगो
 
जिंदगी जो हुई है बेगैरत 
किसी का हाथ सा लगे लोगो
 
आदमी तोड़ता दिखे तो है
जारी रिवाज सा लगे लोगो
 
जिसे अधिकार मैं समझता हूँ 
उन्हें लिहाज सा लगे लोगो…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 9, 2011 at 11:30pm — No Comments

अँधेरे की चीख से

यक़ीनन आप मेरे रहनुमा है

तभी तो कारवां ये बदगुमां है

 

निगाहे शौक से देखे अगर वो 

ज़हां में आशियां ही आशियां है

 

उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ

मेरी आँखों के आगे इक मकां है

 

छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से

न जाने कौन अपने दर्मियां है

 

वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी 

हर इक तारीख में अँधा कुआं है

 

दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ

जमीं की आग सा मेरा बयां है  

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment

मेरे संग्रह "अँधेरे की चीख" से

उदघोष में दम चाहिए

 मिमिया रहे है लोग

 

ये कौन क़त्ल हो गया

बतिया रहे है लोग

 

पूनियों सा वक़्त को

कतिया रहे है लोग

 

संवेदना की मौत पर

खिसिया रहे है लोग

 

धोखे की टट्टियों को

पतिया रहे है लोग

 

कुर्सी पे बैठे बैठे

गठिया रहे है लोग

 

आदम नहीं गधे सा

लतिया रहे है लोग

 

मौके भुना रहे है

हथिया रहे है लोग

 

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments

मेरे संग्रह अँधेरे की चीख से ३ ग़ज़ले

एक 

जब से हुई है बंद दुकानें उधार की 

रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की

सावन के रंग अब के फीके लगा किये

ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की

बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े

हद देख ली है हम ने सब के मयार की

हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता

मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की

बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा

कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की

किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें

लिखी गयी कहानी उनसे शिकार…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 4, 2011 at 6:30pm — 3 Comments

बड़े कवि

 

बड़े कवि

 

बड़े कवि

बड़ी कविता लिखते है 

जिसे बड़े कवि पढ़ते है

फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए 

कला साहित्य के 

नए प्रतिमान गढ़ते है

बड़े कवि

ख़ारिज कर देते है

किसी को भी 

तुक्कड़ या लिक्खाड़ 

कह कर

बड़े कवि

गंभीरता का लबादा ओढ़े 

किसी नोबेल विजेता की 

शान में कसीदे पढ़ते है

विदेशी कवियों को'कोट ' करते है

फिर उस 'कोट' के

भार…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 3, 2011 at 10:30pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
19 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service