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Sitaram singh's Blog – December 2011 Archive (5)

आस के पास

आस ही सांस है

और सांस ही जीवन है

और जीवन ही संसार है 

यानि सांस ही आस है

सांस ही आस है

या आस ही सांस है?

या फिर आस ही सांस है

या फिर सांस ही आस है

गर सांस  ही आस है

तो आस ही जीवन है

और आस ही संसार है

Added by sitaram singh on December 10, 2011 at 3:12pm — No Comments

हिंदी रंगमंच

हिंदी रंगमंच की समस्या बहुत है इस पर शोध की ज़रूरत है .मोटे तौर पर देखा जाये तो यह भी कहा जा सकता है की रंगमंच के  लिए   जो  माहोल बनाना चाहिए था वो बना नहीं जो स्तिथि है वोह भी भयकर है .एक तो लोगो की दिलचस्पी फिल्मो से होते हुए टीवी से चिपक गई है . जो लोग इस विधा से जुड़े है उन्हें कोई मदद नहीं …

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Added by sitaram singh on December 8, 2011 at 1:12pm — No Comments

हिंदी रंगमंच

कभी कभी नाट्य रचनाओ की कमी का उलेख भी किया जाता है. हिंदी में नाट्य लेखन की कमी तो है ,पर इतना नहीं की इससे मंचन पर बहुत असर हो रहा हो .इस दिशा में दिल्ली का साहित्य कला परिषद् ने कुछ अच्छे कदम उठाये है और हर साल कुछ अच्छे नाटक लिखे गए है और प्रकाश में आये भी है कुछ कहानिओ का नाट्य रूपांतर भी हुए है और उसका अच्छा मंचन भी हुआ है इसमें उदय…

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Added by sitaram singh on December 7, 2011 at 1:29pm — No Comments

हिंदी रंगमंच

अलका जी का रंगमंच जिसे आज भारत का आधुनिक रंगमंच के नाम से जाना जाता है वह एक सूट बूट में अन्दर   से धोती कुरता वाला भारतीय है वह कुलबुला रहा है बाहर आने के लिए. सभ्यता और संस्कृति की लड़ाई में संस्कृति दब रही है और जो सभ्य है उन्हें धोती के ऊपर सूट नहीं पसंद वह सीधे सूट को पसंद करेगा और अंग्रेजी नाटक की और जायेगा इसमें उसकी कोई गलती नहीं ह्हिंदी रंगमंच इस का शिकार है . दर्शको से    उसका सम्बन्ध नहीं बन प् रहा…

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Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 1:44pm — No Comments

हिंदी रंगमंच और उसकी समस्या

हिंदी रंगमंच की शुरुआत दो तरह से हुई, एक पारंपरिक तरीके से और दूसरा अंग्रेजो की नक़ल से पारंपरिक तरीके से उगे रंगमंच को लोकमंच का नाम मिला और दुसरे को आजकल की भाषा में रंगमंच बोलते है |

अंग्रेजो को गर्मी में भी भारत में रखने के लिए अंग्रेजी रंगमंच को भारत बुलाया जाता था इसी के जवाब में भारतीयता से लोटपोट पारसी थियेटर का जनम हुआ जो धीरे धीरे अपना स्वरुप बदलता हुआ आज का रंगमंच बना | ज्यादा इतिहास में जाये तो आधुनिक रंगमंच का जनक इब्राहीम अलका जी को माना जा सकता है | जवाहर लाल जी इनसे…

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Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 12:00pm — 2 Comments

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