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वेदिका's Blog – October 2014 Archive (1)

कल के लिए (लघुकथा)

"रागिनी ! इन छोटी छोटी बातों को नजरंदाज करना सीखो I"
"तो आप क्या चाहते हैं कि मैं चुप बैठी रहूँ ?"
"देखो अकेली यात्रा करोगी तो कोई न कोई ऐसा व्यवहार करेगा ही I अब क्या मिलेगा पुलिस में शिकायत करने से ?"
राजेंद्र ने छोटी बहन को समझाया।
"आपकी बेटी भी तो कुछ ही सालों में जवान हो जाएगी भाईसाब I "
भाई के माथे पर अचानक पसीने की बूँदें चुहचुहा उठीं।
"रुक रग्गो, गाड़ी निकालने दे मुझे, हम सब तुम्हारे साथ चलेंगे रिपोर्ट लिखवाने I "
(संशोधित)
मौलिक व अप्रकाशित

Added by वेदिका on October 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments

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