नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार ।
 नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।।
नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार ।
 उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर  इकरार ।।
नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद ।
 बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।।
नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार ।
 कामुकता से है भरा, नजरों का संसार ।
नजरें ही करने लगी, नजरों से व्यापार ।
 नजर पाश में हो गई, नजर बड़ी लाचार  ।।
नजरों…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 31, 2025 at 3:00pm — 7 Comments
कुंडलिया. . .
चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल ।
 स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।
 खूब  लगाओ  तेल , वक्त  कब  लौटे  बीता ।
 भला उम्र की दौड़ , कौन है आखिर जीता ।
 चौंकी बढ़ती  उम्र , जरा जो बिजली दमकी ।
 व्यग्र  करें  वो  केश , जहाँ पर चाँदी चमकी ।
सुशील सरना / 22-8-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 22, 2025 at 1:30pm — 2 Comments
मंजिल हर सोपान की, केवल है अवसान ।
मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।।
छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
 पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।
छोटे से परिवार में, सीमित  है औलाद ।
 उस पर भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।
पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
 प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।
कत्ल प्रेम में आजकल, हर दिन  होते आम ।
 नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।
धोखा…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2025 at 3:00pm — 6 Comments
धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार ।
 कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार ।
 इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे ।
 मन में भोग-विलास, आचरण दिखें अनूठे ।
 कर्मों के परिणाम , देख फिर हरदम रोते ।
 करें न मन को शुद्ध , गंग में बस तन धोते ।
सुशील सरना / 10-8-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 10, 2025 at 7:00pm — 4 Comments
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