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Sushil Sarna's Blog – August 2025 Archive (4)

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार ।

नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।।

 

नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार ।

उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर  इकरार ।।

 

नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद ।

बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।।

 

नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार ।

कामुकता से है भरा, नजरों का संसार ।

 

नजरें ही करने लगी, नजरों से व्यापार ।

नजर पाश में हो गई, नजर बड़ी लाचार  ।।

 

नजरों…

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Added by Sushil Sarna on August 31, 2025 at 3:00pm — 7 Comments

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .

चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल ।
स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।
खूब  लगाओ  तेल , वक्त  कब  लौटे  बीता ।
भला उम्र की दौड़ , कौन है आखिर जीता ।
चौंकी बढ़ती  उम्र , जरा जो बिजली दमकी ।
व्यग्र  करें  वो  केश , जहाँ पर चाँदी चमकी ।

सुशील सरना / 22-8-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 22, 2025 at 1:30pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।

मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।।

 

छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।

पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।

 

छोटे से परिवार में, सीमित  है औलाद ।

उस पर भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।

 

पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।

प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।

 

कत्ल प्रेम में आजकल, हर दिन  होते आम ।

नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।

 

धोखा…

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Added by Sushil Sarna on August 19, 2025 at 3:00pm — 6 Comments

कुंडलिया. . . .

 

धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार ।
कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार ।
इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे ।
मन में भोग-विलास, आचरण दिखें अनूठे ।
कर्मों के परिणाम , देख फिर हरदम रोते ।
करें न मन को शुद्ध , गंग में बस तन धोते ।

सुशील सरना / 10-8-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 10, 2025 at 7:00pm — 4 Comments

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