गीत रीते वादों का ......
मैं गीत हूँ  रीते  वादों  का , मैं  गीत हूँ  बीती  रातों  का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
          हर मौसम ने उस मौसम  की
          बरसातों  को   दहकाया   है , 
          बीत गया वो मौसम दिल का
          लौट के फिर  कब  आया  है ,
जश्न  मनाता हूँ  मैं  अपनी , भीगी  हुई  मुलाकातों  का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
कैसे अपने स्वप्न मिटा दूँ…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 27, 2022 at 3:01pm — No Comments
दोहा त्रयी : फूल
कागज के ये फूल कब, देते कोई गंध  ।
भौंरों को भाता नहीं, आभासी मकरंद  ।।
इस नकली मकरंद पर, मौन मधुप गुंजार ।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।।
अब कागज के पुष्प दें, प्रीतम को उपहार ।
मुरझाता नकली नहीं, फूलों का संसार ।।
सुशील सरना / 15-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 15, 2022 at 3:17pm — No Comments
मुक्तक : गाँव .....
मिट्टी का घर  ढूँढते, भटक  रहे  हैं  पाँव।
 कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो  गाँव ।
 पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब  कूप -
 काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
                   *******
 कच्चे घर  पक्के  हुए, बदल  गया  परिवेश ।
 छीन लिया हल बैल का, यंत्रों  ने अब देश ।
 बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ  के  रंग  -
 वर्तमान  में  गाँव  का, बदल  गया  है  पेश ।
 (पेश =रूप, आकार )
                      ********
 गाँवों…
Added by Sushil Sarna on July 11, 2022 at 1:00pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
 काया को भाने लगा, अच्छा  अब  आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
 शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
 जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
 शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
 अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर । 
   उत्पातों  के  दौर  में, साँस का  मचाए  शोर  ।
        रात   बढ़ी  बढ़ते   गए,  आलिंगन   के   बंध -
           पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
                       * * * * * 
एक दिवानी को हुआ, दीवाने  से  प्यार ।
     पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
           गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत  - 
                चरम पलों में हो  गए, शर्मीले  अभिसार…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2022 at 9:38pm — 2 Comments
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