क्यों हर कोई परेशां है
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है 
 ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा 
 कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
 बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से 
 दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है 
 पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती…
Added by Madan Mohan saxena on July 7, 2014 at 4:55pm — 5 Comments
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