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Shalini rastogi's Blog – June 2014 Archive (3)

2 कुण्डलियाँ

1.

चिंतन की मथनी करे, मन का मंथन नित्य |

सार-सार तरै ऊपर , छूटे निकृष्ट कृत्य ||

छूटे निकृष्ट कृत्य , विचार में शुद्धि आए |

उज्ज्वल होय चरित्र, उत्तम व्यवहार बनाए||

मिले सटीक उपाय, समस्या को हो भंजन |

चिंता भी हो  दूर , करें जब मन में चितन ||

2.

अक्ल बिना बंधु देखो , सरै न एकौ काम |

सब जीवों में श्रेष्ठतम , मानव तेरा नाम||

मानव तेरा नाम, है यह विवेक सिखाती |

ऊँच-नीच की बात, मानवों को समझाती ||

इक जैसा…

Continue

Added by shalini rastogi on June 29, 2014 at 11:00pm — 6 Comments

कुण्डलिया ... मृगतृष्णा

( गुरुजनों की समीक्षार्थ प्रस्तुत )

तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय |

तपती रेत में देता , जल का बिम्ब दिखाय ||

जल का बिम्ब दिखाय,  बुझे पर प्यास न उसकी|

त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की ||

प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे - कृष्णा |

सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by shalini rastogi on June 24, 2014 at 11:30am — 12 Comments

कुण्डलिया ( चिंता व चिंतन )

(सभी गुरुजनों की समीक्षार्थ ... सादर -)

चिंता चित पर ज्यों चढ़े, पल-पल मन झुलसाय|

चिंता रथ पर  जो चढ़े, चिता तलक पहुँचाय ||

चिता तलक पहुँचाय , रहे तन छिन-छिन घुलता |

छिने दिमागी चैन , नींद से वंचित फिरता ||

देत न कोय उपाय, सुख व सेहत की हंता |

करें  चिंतन सदैव, करें न कभी भी चिंता ||

.

मौलिक व अप्रकाशित

Added by shalini rastogi on June 23, 2014 at 6:30pm — 9 Comments

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