क्या भरोसा जिन्दगी का कल रहे या ना रहे।
क्या पता यह बुलबुला कुछ पल रहे या ना रहे।।
है भयंकर इक समन्दर ये जहाँ उठ्ठे तूफां,
तैरती कागज की कश्ती तेज मौजों में यहाँ।
है किसे मालूम कब ये गल रहे या ना रहे।।
पूरी हो पायेंगी शायद ही खुशी ओ ख्वाहिशें,
मिट्टी के इस ढेले पे होतीं गमों की बारिशें।
क्या पता पानी में कब ये घुल रहे या ना रहे ।।
हो गई मुश्किल न कम है जिन्दगी अब बोझ से,
मौत रूपी माशूका की गोद में सब…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on June 30, 2011 at 8:00am — No Comments
गाँधीवादी गुण्डों ने ही लूट लिया गाँधी का देश
जात पात मजहब पंथों में फूट लिया गाँधी का देश॥
रघुपति राघव राजाराम मंदिर के कारण बदनाम,
ईश्वर या अल्लाह का नाम अब करवाता कत्ले-आम।
सत्य प्रेम की पगडंडी से छूट लिया गाँधी का देश॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बन बैठे हैं आज कसाई,
चंगुल में हैवानों के मानवता बकरी सी आयी।
कर हलाल हैं रहे हाय! अब टूट लिया गाँधी का देश ।।
गाँधी जी का धर्म अहिंसा, इनका है…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on June 3, 2011 at 8:28am — 2 Comments
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