For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी''s Blog – March 2012 Archive (9)

हमको बहुत लूटा गया - 2

हमको बहुत लूटा गया,

फिर घर मेरा फूंका गया.

 

झगड़ा रहीम-औ-राम का,

पर, जान से चूजा गया.

 

दर पर, मुकम्मल उनके था,

बाहर गया, टूटा गया.

 

भारी कटौती खर्चो में,

मठ को बजट पूरा गया ,

 

मजलूम बन जाता खबर,

गर ऐड में ठूँसा गया. (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement)

 

उत्तम प्रगति के आंकड़े,

बस गाँव में, सूखा गया.

 

वादा सियासत का वही,

पर क्या अलग बूझा गया!!

 

है चोर, पर…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 11:30pm — 22 Comments

हमको यहाँ लूटा गया

हमको यहाँ लूटा गया,

वादा तेरा झूठा गया.



वो कब मनाने आये थे?

हम से नहीं, रूठा गया.



चोटें तो दिल पर ही लगी,

खूं आँख से चूता गया.



जो चुप रहे, ढक आँख ले,

राजा ऐसा, ढूंढा गया.



पैसों से या फिर डंडों से,

सर जो उठा, सूता गया.



दारु बँटा करती यहाँ!

यह वोट भी, ठूँठा गया. (ठूँठ = NULL/VOID)



संन्यास ले, बैठा कहीं,

घर जाने का, बूता गया.



नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?

दिन आज भी रूखा गया.…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 12:30am — 16 Comments

मैखाना है

ऐसा लगता है की मेरा यों अब गुजरा जमाना है,

बेगाना रुख किये 'साकी'! यहाँ तेरा मैखाना है.



फकीरों को कहाँ यारो कभी मिलता ठिकाना है,

बना था आशियाना, आज जो बिसरा मैखाना है!



कभी अपना बना ले पर कभी बेदर्द ठुकरा दे,

सयाना जाम साकी! और आवारा मैखाना है.



तेरी हर एक हंसी पर ही चहक कर के मचल जाना.

हमेशा हुस्न-ए-जलवो पर जहाँ हारा मैखाना है.



तेरी तस्वीर के बिन ही मै पीने आज बैठा हूँ,

ख़ुशी या गम हो जुर्माना मुझे मारा मैखाना है. …

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 21, 2012 at 9:35am — 14 Comments

जिंदगी ले के चली

जिंदगी ले के चली, एक ऐसी डगर,

राह के उस पार, चलते हैं हम सफ़र. 



रात और दिन, मील के पत्थर जैसे हैं,

मोड़ बन जाते कभी, हैं चारों पहर.

  

फादना पड़ता है, दीवारें अनवरत,

ढूँढना चाहूँ मै, 'उसको' जब भी अगर.

 

शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,

नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.



द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें,

बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर.



जिंदगी में लेने आता, एक बार पर-

बैठती हूँ रोज, 'बस्तीवी'…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 17, 2012 at 9:07am — 13 Comments

दिन फिर गये जो जी रहे अब तक अभाव में

दिन फिर गये जो जी रहे अब तक अभाव में,

वादों से गर्म दाल परोसी चुनाव में.

ढूंढे नहीं  मिला एक भी रहनुमा यहाँ,

सच कहने सुनने की हिम्मत रखे स्वभाव में.

 

तब्दीलियाँ है माँगते यों ही सुझाव में,

फिर भेज दी है मूरतियां डूबे गाँव में,

दिल्ली में बैठ के समझेंगे वो बाढ़ को,

लाशें यहाँ दफ़न होने जाती है नाव में.

 

पूछा क्या रखोगे…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 10:00am — 14 Comments

मांग मत अधिकार अपना

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,
ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए, बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है.
 
सैर को आये कभी जब, मान उपवन गाँव को,
खेत सूखे देख कर, गर्दन झुकी है, शर्म है.
 
कह दिया गर, 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
ज्ञान मिलता, सब्र और विश्वास रखना धर्म…
Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:00am — 25 Comments

होली नहीं तो क्या मज़ा!

जिंदगानी में अगर होली, नहीं तो क्या मज़ा.

गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.

मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,

पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.

टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,

दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.

छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!

खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.

रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,

भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 8, 2012 at 10:41pm — 6 Comments

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा

शेख बच निकला

तू था मुहरा

 

ढूंढ़ बकरा

शनैः रेत लो गला

दे चारा हरा

 

बेजुबाँ खरा

हक माँगने लगा

तो दोष भरा

 

अना दोहरी

नश्तर सी चुभन

दगा अखरी!

 

यहाँ खतरा

ईश्वर हुआ अंधा

इन्सां बहरा

 

यार बिसरा

अब यहाँ क्या धरा

चलो जियरा

 

छटा कुहरा

छद्म बंधन मुक्त

पिया मदिरा

 

समा ठहरा

इंद्रधनुषी दुनिया

नशा…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 10:30am — 17 Comments

जबान पर मसाला

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,

अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.



पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,

जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service