कुछ अहसास हर अहसास से परे
कुछ अरमान उम्मीदो से भरे
गम है लिखे मुक्कदर में सभी
केमहबूब का साथ हर गम हरे
किताब की लिखावट तो नीरस
हैशब्दों की बनावट भी नीरस है
गुलाबों सा महकता महबूब का प्रेम पत्र
लिये जिंदगी का हर रस है
दुनिया में अस्तित्व हीन हूँ
सनम ही मेरी दुनिया है
उसी में डुबा रहूँ ताउम्र
सनम ही मेरा अस्तित्व हैं
मिलन यामिनी में साथ बैंठे
खुला आसमा ताकते है
चाँद को…
ContinueAdded by Mayank Sharma on February 15, 2011 at 3:30pm — No Comments
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