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Pawan Jain's Blog – January 2016 Archive (2)

स्वप्न

ए सी केब से उतर कर कैमरा,जूम लैंस,बाईनाकुलर सम्हाल भरतपुर बर्ड सेंचुरी में दस दिन बिताने का प्रोग्राम..

"यह क्या भाई सा ? कोई चहल पहल नहीं, बंद है क्या?"

"नहीं तो लोग आते है,दो घंटे में देख कर चले जाते हैं।"

"दो घंटे में तो अंदर झील तक ही नहीं पहुंच पायेंगे।"

"कहां की झील,सब सूखा पड़ा है।"

"यें... कहाँ गए वे दरख्त, घास के हरे भरे मैदान, झील पानी और कलरव।"

"सब झुलस गऐ, सूख गऐ, पिछली साल जो पंछी बचे थे, गर्मी में पेड़ों से पके फलों की तरह टपक गऐ, साइबेरियन क्रेन…

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Added by Pawan Jain on January 11, 2016 at 8:30am — 8 Comments

शादी (लघुकथा)

बचपन से ही मेरी माँ ने मुझे फ्राक की जगह पेंट शर्ट पहनाया, मेरा राजा बेटा बड़ा बहादुर है,सुन सुन बड़ी हुई। पर आज क्यों मेरा नाम ले लेकर रो रही हैं।

"क्या इसी दिन के लिए पढाया लिखाया अपने पैरों पर खड़ा किया?"

"माँ यह क्या घिसा पिटा डायलॉग,मैं ऐसा क्या गलत कर रही हूँ? मैं नहीं प्रदर्शित कर सकती अपने आप को ट्रे लेकर चाय के कपों के समान।"

"तो कोई अपने मन का लड़का ढूंढ ले,तुझे इतनी आजादी तो दी है।"

"क्या लडका ढूंढ लूँ,सब लिजलिजे, ढुलमुल।एक फटकार में पेंट गीला कर दें।"

"तो…

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Added by Pawan Jain on January 8, 2016 at 1:30pm — 11 Comments

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