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neeraj sanadhya
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udaipur
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learning to paint with letters

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे........................... 

पथ फूलों का हो या शूलों का ,    सुख दुःख से झुझते झूलों का

पतझड़ से  लकदक शाखों पर ,  क्या तुम फूल खिला पाओगे

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे ....................

बंजर बंजर  है  हर लम्हा ,    खुश्क खुश्क रेत पहाड़ों सा

तपते रिश्तों की जमीनों पर , क्या तुम प्रेम उगा पाओगे

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे..................

सूनी सूनी सी है साँसे , सुस्त सुस्त है सारा मंजर

खाली खाली आकाशों पर , क्या तुम जश्न  मना पाओगे

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे..................

जग हार के जीता है मैंने तुमको , जग मान लिया मैंने तुमको

तुम हार के मन  की हर बाजी  ,   क्या तुम जीत दिखा पाओगे

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे ....

रीतों की है दीवारें...रीतों के है सारे बंधन

रीतों की सख्त मीनारों से ,  क्या तुम रीत विदा पाओगे

क्या तुम प्रीत निभा पाओगे ....क्या तुम जीत लिवा  पाओगे....

                                                          ............नीरज "रमेश"    

 

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At 2:28pm on August 11, 2013, neeraj sanadhya said…

"कविताएँ तो बिखरी हुई है फिज़ाओं में

महज़ शब्दों को सहेजने  की कोशिश है मेरी

बस अक्षरों को ईशकृपा में मिलकर

प्रसाद ले लिया करता हूँ "

                               "नीरज रमेश" 

At 8:40am on August 11, 2013, Neeraj Nishchal said…

most welcome

 
 
 

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