For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह दिसम्बर 2019 – एक प्रतिवेदन डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

दिनांक 22 दिसम्बर 2019 ( रविवार) को ओबीओ लखनऊ चैप्टर के जुझारू साहित्यकार मासिक साहित्य संध्या में नीरांजन हेतु 37, रोहतास एन्क्लेव, फैजाबाद रोड (डॉ. शरदिंदु जी के आवास) पर समवेत हुए I इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यक्रम में पहली बार आये अतिथि कवि श्री प्रबोध कुमार ‘राही’  ने की I कार्यक्रम के आयोजक एवं ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ . गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने विगत माह में हुए वार्षिक उत्सव की सफलता हेतु सभी सदस्यों और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया I कार्यक्रम के प्रथम चरण में संयोजक ने  डॉ. अशोक शर्मा को अपने सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘शूर्पणखा’ पर लेखकीय वक्तव्य देने हेतु आमंत्रित किया I

 

डॉ. अशोक शर्मा ने उपस्थित साहित्यकारों को अवगत कराया कि शूर्पणखा दशानन रावण की बहन थी I उसे अपने भाई से बड़ा लगाव था  किन्तु राजा कालकेय के सेनापति विद्युतजिह्व पर अनुरक्त  हो उससे विवाह कर लेने के कारण रावण उससे रुष्ट हो गया  I  उसने एक युद्ध में विद्युतजिह्व का वध कर दिया I अपनी बहन के पोषण के लिए  उसने  दंडकारण्य  का पूरा प्रदेश शूर्पणखा को दे दिया I किन्तु शूर्पणखा अपने पति  के वध  से असंतुष्ट थी और वह रावण के दर्प का विनाश करने का उपाय सोचने लगी I संयोग से शूर्पणखा की मौसी (केकसी की बहन ) कुंभीनसी के पति मधुपुरी नरेश का वध भी रावण की वजह से ही हुआ I कुंभीनसी भी रावण से उतना ही असंतुष्ट थी जितना कि शूर्पणखा I इस प्रकार रावण के दर्प को चूर करने की योजना में शूर्पणखा को कुंभीनसी का साथ मिल गया  I उस समय राम का यश और पराक्रम सारी धरती में गूँज रहा था I   राम ने जो ‘निश्चरहीन करहुँ महि ’ की प्रतिज्ञा की थी, वह  भी लोक में व्याप्त हो चुकी थी I अतः  इन दोनों को लगा कि यदि राम और रावण  को एक दूसरे के विरुद्ध  कर दिया जाय तो काम बन सकता है I शूर्पणखा ने जो राम से प्रणय निवेदन किया , वह  उसकी योजना का ही एक भाग था i इसके बाद जब राम ने खर-दूषण और त्रिशिरा का बड़ी आसानी से  सफाया कर दिया तो दोनों बहनों को विश्वास हो गया कि राम अवश्य ही रावण  का वध करने में समर्थ हैं  I इसके बाद ही शूर्पणखा ने अपना जाल फैलाया और रावण को राम से अपने अपमान का बदला लेने के लिए उकसाया I  डॉ . शर्मा ने रामकथा के इस बिंदु पर अवश्य उंगली उठायी कि शूर्पणखा का प्रणय निवेदन क्या इतना बड़ा अपराध था  कि इसके लिए उसके नाक-कान काट लिए जाये और उसे विरूप कर दिया जाए I उन्होंने यह भी बताया कि कम्बन रामायण में लक्ष्मण केवल एक छड़ी से ही शूर्पणखा का निवारण करते हैं I उपस्थित विद्वानों में शूर्पणखा को लेकर और भी जिज्ञासाएं  थीं पर डॉ. शर्मा ने बड़े विनीत स्वर में सबका समाधान यह कहकर कर किया कि इसके लिए उपन्यास पढ़ना पड़ेगा I

 

कार्यक्रम के अगले चरण में  मनोज शुक्ल ‘मनुज’ के संचालन   में काव्य पाठ का आरंभ हुआ  I मृगांक श्रीवास्तव ने सदैव की भाँति हास्य और व्यंग्य से भरपूर अपनी रचनाओं से न केवल उपस्थित साहित्यकारों का मनोरंजन किया अपितु व्यंग्य के प्रभाव से परिस्थितियों का एक गंभीर आकलन करने के लिए भी बाध्य किया I एक व्यंग्यकार की यही सबसे बड़ी उपलब्धि  होती है I  उनकी रचना की एक बानगी प्रस्तुत है -

एक दिन आर्य भट्ट ने बैठे –बैठे  रिश्तेदारों की गिनती की I

अलग अलग मुसीबतों के लिए रिश्तेदारों की पहचान की I

जो वक्त पर काम आये उनकी भी लिस्टिंग की

महान चिंतन के बाद उन्होंने ‘जीरो’ की खोज की II

 

डॉ.अंजना मुखोपाध्याय को नये युग की उस परंपरा से ग्लानि होती है जो बुजुर्गों के मार्गदर्शन को महत्व नहीं  देती   I यहाँ तक कि उनकी उपेक्षा तक भी कर देती है I अनुभव के नाम पर शून्य ऐसे चरित्रों पर उनका प्रहार कई सवाल खड़े करता है I कविता स्वयं बोलती है I उसकी रवानी इस प्रकार है -

मखमली कालीन से ढंककर , राह मिटा दिया I

बुजुर्गों की सीख का हमने यह सिला दिया II

 

कवयित्री  कुंती  मुकर्जी  की बंजारन नारी की स्वच्छंदता का प्रतिनिधित्व करती है I शायद कहीं परियों का एक लोक है , जहाँ हवा में तैरती  हुई बंजारन एक उन्मुक्त उड़ान भरती है I इस कविता में एक अनोखी रूमानियत है और अनुराग की मधुर मिठास भी है I यह हमे ‘छायावाद’ के रुपहले रूपकों की ओर ले जाती है I एक उदाहरण इस प्रकार है -

तारों भरा आकाश , गहरी अंधेरी रात

एक स्त्री बंजारन, दूर कहीं दूर

निकल जाना चाहती है 

 

कवयित्री नमिता सुंदर की पहचान ही उनकी कविता है I अपनी अनुभूतियों में अक्सर वे उस सतह को खोज लेती हैं जहाँ सामान्यतः लोग फिसल जाते हैं I उनके बंद दरवाजे की खोज भी कुछ ऐसी ही है I निदर्शन प्रस्तुत है –

हम सबके जीवन में ऐसा होता है

एक बंद दरवाजा

प्रेम में , मित्रता में

दुखों में, परेशानियों में  

अक्सर सामने आ खड़ा होता है

एक बंद दरवाजा

 

डॉ , शरदिंदु मुकर्जी ने सर्वप्रथम गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की  कविता ‘बाहु’ का काव्यानुवाद प्रस्तुत किया ,फिर उन्होंने अपनी रचना  ‘परछाईं ‘ का पाठ किया I इस कविता में परछाईं का रूपक लेकर  जीवन के उतार–चढ़ाव को परखने का प्रयास हुआ है  I  परछाइयां भी मानव को कैसे-कैसे भ्रम में डाल देती हैं I शुक्र है कि -

क्षितिज पर अस्तगामी सूर्य

सभी प्रश्नों का उत्तर देकर

विदा लेने को व्याकुल होता है -

इस आश्वासन के साथ

कि प्रतीक्षा करो,

सूर्योदय अवश्य होगा I 

और मैं आश्वस्त होकर

खो जाता हूँ

अपनी ही परछाईं में,

सुबह होने तक.

 

 डॉ, अशोक शर्मा  ने अपनी एक अति  लोकप्रिय कविता का अपने विशिष्ट अंदाज में पाठ किया I साहित्य में मन चंचलता का मानक है i यह मन जाने क्या क्या गुनता रहता है i आखिर में कवि भी अकुला कर कह ही देता है कि बहुत बोलता है यह मन I इसकी बकवास कौन कहाँ तक सुने ? लेकिन मन तो निर्बंध भी है एक पक्षी की तरह , तो-  ----

लो फिर गया पेड़ की चोटी पर जा बैठा

उड़ता फिरता रहता है मन चिड़ियों जैसा I

 

कवयित्री आभा खरे ने अपने अंतस में जलती प्रतिरोध की आग को एक नए रूप में देखा जो  न डराती है , न जलाती है , पर जलती रहती है किसी के जिंदा होने की सबूत की तरह I

आग पहले डराती है

फिर जलाती है

राख हो जाने तलक

लेकिन 

आसान नहीं  है आग होना

क्योंकि अंतस में धधकती

प्रतिरो  की आग 

न तो डराती है

न जलाती है

जलती रहती है

हमारे जिदा रहने का 

सबूत देते हुए  I

 

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव की परिकल्पना में राम फिर  क्रोध में हैं और उसका कारण क्या है वह उनकी  निम्नांकित  पंक्तियों  से  स्पष्ट  है -

सोने की लंका बनती है तो  बन जाने दो

रावण का डंका घहराता है घहराने  दो

धर्म शास्त्र खंडित होते हैं मत घबराओ 

छा रहा यज्ञ का धूम मलिन तो  छाने दो

 

लेकिन हो रहा सतीत्व हरण यदि नारी का

लूटा  जाता है सर्वस्व किसी  सुकुमारी का

तो अग्निबाण  मेरा अणु-बम सा फूटेगा

मैं प्रत्यंचा खींच धनुष की अब आता हूँ I

 

ग़ज़लकार भूपेन्द्र सिंह ने रवायती ग़ज़ल बड़े रोमांटिक और शोख अंदाज में पढ़ी I  नमूना प्रस्तुत  है-

बेरुखी मुमकिन है  चाहत का नया आगाज हो  I

हो नहीं सकता मेरी उल्फत नजरअंदाज हो  II

 

संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ की रम्य कविताओं में भी ओज का स्वर मुखर रहता है I  यथा-

दूब पर तुम ओस की हो बूँद जैसी

स्वप्न मिलने के संजोये यामिनी हूँ

दृष्टि पड़  जाए अगर तो पाप धुलते

देवी की ले शक्ति जन्मी कामिनी हो

 

अंत में अध्यक्ष प्रबोध कुमार ‘राही ‘ ने  ‘यहाँ कुछ कह नहीं  पाता हूँ ‘  और ’ कुंवारी बेटी का बाप’’ शीर्षक से व्यवहारिक कवितायें सुनाईं I शरद के गहराते मौसम में गर्म चाय और देशी नाश्ते ने वातावरण में खुनकी ला दी I आस्वाद करते करते मैं डॉ. शरदिंदु की कविता पर अटक गया और सोचने लगा –

परछाइयां क्यों हो जाती  हैं  

कभी छोटी और बड़ी

कभी लुप्त भी हो जाती हैं 

ये परछाइयां

क्या ये मनुष्य के

किसी रहस्य का

करती रहती है पर्दाफाश

काश !

हम समझ पाते उन्हें                     (सद्य  रचित )

---------------- * --------------

 

 (मौलिक /अप्रकाशित )

 

Views: 233

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
12 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
24 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
54 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
55 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service