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बदलते चेहरे (लघुकथा)

दानशीलता , सज्जनता और खुली सोच के कारण लाला गजेन्द्र प्रसाद का हर कोई कायल था । चुनाव में वे दमदार प्रत्याशी होकर जब बस्ती में गये तो गरीबों की दशा देख रो पडे । स्त्री सम्मान और गरीबों के प्रति बेहद संवेदनशील भाषण भी दिया । अपने ऑफिस से निकले तो ड्राइवर को नदारद देख उनका पारा चढ़ गया।उसके आते ही एक तमाचा उसके गाल पर दिया और बिना कारण जाने सप्ताह भर की तनख्वाह काट लेने का आदेश भी। उनकेे कार्यकलाप के ब्यौरे के लिए पीछा कर रही संवाददाता छाया उनके ये बदलते रूप देखकर चौंक गई।पर कुछ सोच समझ पाती इससे पहले पकड़ी गई।और उनके कक्ष में लाई गई। बाहर निकलते हुए वो सचिव से बोले:

"छोकरी थी बहुत जोरदार-उसका वीडियो दिखाकर समझा देना की अगर जुबान खोली तो नेट पर डाल दिया जाएगा "


( मौलिक एवं अप्रकाशित )

ज्योत्स्ना !!

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 27, 2015 at 8:00pm

आदरणीया

कमाँल की रचना है  i एक्सपोज  करती हुयी . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 27, 2015 at 5:54pm
प्रयास हेतु बधाई।
Comment by Pankaj Joshi on April 27, 2015 at 1:24pm

सुंदर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2015 at 1:16pm

आदरणीया ज्योत्स्ना जी, आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ. 

अपार संभावनाओं का संकेत करती इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

टंकण त्रुटियाँ-

दशा देख रो पडे ।----->दशा देख रो पड़े ।

पकड़ी गई (। ) और उनके कक्ष में लाई गई। ---> और के साथ पूर्णविराम?

समझा देना की अगर जुबान -----> समझा देना कि अगर जुबान 

कृपया ध्यान दे...

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