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शब्दों के जाल में फँस कर उलझ गया हूँ ,
मैं बस शब्द बन कर रह गया हूँ ,
सोचता हूँ निकल जाऊ इस जाल से ,
मगर वो कर नहीं पाता, कारण ?
जब भी कोशिश करता हूँ ,
और भी उलझता ही जाता हूँ ,
पहले बेटा फिर भाई ,
फिर काका बन गया ,
आगे चल कर पति ,
फिर पिता और अब ,
दादा बन गया हूँ ,
अगर अब भी नहीं निकल पाया ,
तो ये मेरी बदनसीबी हैं ,
हे प्रभु बुद्धि दे ,
मेरी सुधि ले ,
कि मैं इस मकड़ जाल से निकल सकूँ  ,
और इन शब्द जाल से निकल सकूँ  ,

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2011 at 9:46pm
सुंदर भाव है गुरु जी , भगवन जल्द आपको शब्दों के जाल से निकाले, कारण ? गुरु जी अगर फसे रह गए तो चेलों का क्या होगा ?
Comment by Rash Bihari Ravi on March 3, 2011 at 5:52pm
dhanyabad rajesh ji
Comment by राजेश शर्मा on March 3, 2011 at 7:03am

गुरूजी , आपने जिस शब्द जाल की बात कही है वो दर असल रिश्तों का जाल है.

भावनाएं गलत हों तो शब्द क्या करें. रचना के लिया बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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