!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!
बह्र-2122 2122 212
प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।
दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।
कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,
राम का वनवास गा मां शारदे।
भील-शोषित का यहां उध्दार हो,
एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे।
धर्म का रथ आस्मां में जा रहा,
गर्त में धरती उठा मां शारदे।
आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।
लेखनी का रंग गहरा हो चटक,
घाव पर मलहम लगा मां शारदे।
दृढ़ करो संवेदना सदभाव से,
आप ही परमात्मा मां शारदे।
कर्म का फल भूल जाओं धर्म में,
भाव 'सत्यम' साधना मां शारदे।
के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अन्नपूर्णा जी। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय सुशील भार्इ जी। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय सौरभ सर जी। चूंकि मैंने बह्र को कापी-पेस्ट किया था, किन्तू गजल के अनुरूप 2122, 2122, 212 के अतिरिक्त शेष मात्रा हटाना भूल गया। गजल की जमीन इसी बह्र पर ही लिखी गर्इ है। आपके स्नेह और उपकार दृषिट हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय केवल भाई जी... बहुत ही सुंदर भाव हैं.... गज़ल के शिल्प का मुझे ज्ञान नहीं है.... पर भावों को व्यक्त करने के लिए बधाई..
आदरणीय केवल भाई जी सुंदर गजल बधाई आपको ।
मिसरों का वज़्न लिखा है - 2122 2122 2122 212
लेकिन एक मिसरा इस वज़्न के अनुरूप नहीं है.
बहरहाल, इस प्रयास पर हार्दिक बधाई, भाई जी..
आदरणीय बृजेश नीरज भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आदरणीय अखिलेश भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और गजल अनुमोदन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आदरणीया गीतिका वेदिका जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आदरणीय आशुतोष भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और गजल अनुमोदन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,
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