For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : कम रहे आखिर


पांव रिश्तों के जम रहे आखिर
हम हकीकत में कम रहे आखिर |

जिनके दिल पर भरोसा पूरा था
उनके हाथों में बम रहे आखिर |

तीर उस ओर थे दिखाने को
पर निशाने पर हम रहे आखिर |

दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक ये दम रहे आखिर |


नोट संसद में जेल में हत्या
काम के क्या नियम रहे आखिर |

जाने क्यूँ महलों तरफ जाते हुए
यह कदम अपने थम रहे आखिर |


खूब आलाप जोड़ झाला हो
पर तराने में सम रहे आखिर |

दिन हों अब्बा से कड़क लेकिन शाम
माँ की ममता सी नम रहे आखिर |

दीन का आदमी को खौफ रहे
या खुदा यह करम रहे आखिर |

Views: 349

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 2, 2010 at 2:23pm
धन्यवाद शेष जी बहुत बहुत और दिवाली मुबारक!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 5:24pm
मैं समझ गया था अरुण भाई की यह टंकण का दोष है, टंकण करते समय शब्द कुछ इधर उधर हो गये है |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:12pm
श्री बागी जी वो पांचवां शेर आखिर ग़लत हो ही गया ,दर असल डायरी में सही लिखा है जैसा आपने बताया है |यहाँ टाइप करते गलत हो गया ,आपने ध्यान दिलाया बड़ी मेहरबानी वरना लोग क्या समझते ,आश्चर्य होता है कई बार प्रिव्यू देखने के बाद भी ये चूक रह गयी |बहरहाल आभार और खेद के साथ पुनः एडिट कर भेज रहा हूँ |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:07pm
सर्वश्री वीरेंद्र जी ,नवीन जी और बागी जी रचना पसंद की आप सब ने आभार |और अच्छा करने का प्रयास करूँगा |ओ.बी.ओ. में अब अच्छा लगने लगा है |यह मंच खूब आगे जाए ये कामना है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 10:44am
दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

दोमुहा व्यक्तित्व का पोल खोलते हुए शे'र, बहुत ही बढ़िया कहा आपने,

पाचवे शे'र के मिसरा सानी मे कुछ गड़बड़ी दीखता है,रदीफ़ का दोष आ रहा है | एक बार अरुण भाई नजर दोहराना चाहेंगे,
सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक रहे ये दम आखिर |
मेरे ख्याल से यदि यह कहे कि..................उसमे दम तक ये दम रहे आखिर, या कुछ और |

बाकी सभी शे'र अच्छे लगे | बधाई कुबूल करे |
Comment by Veerendra Jain on October 31, 2010 at 12:31am
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल... अरुण जी
बहुत बहुत बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service