For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब मेरे जीवन की बाती
फफक-फफक बुझने लगे
और मोह छनकर हृदय से
प्राण को दलने लगे

लोचन मेरे जब नीर लेकर
मन के कलुष धोने लगे
और पाप नभ सा मेरा वो
प्रलय-नाद करने लगे

रुग्‍ण सा बिस्‍तर मेरा वो
आह अधिक भरने लगे
और द्वार शंकित नयन से
अदृश्‍य दूत तकने लगे

हे अधर अपनी धरा को
क्षणभर सनातन साज देना
दूर तारों में छिपा जो
उसको जरा आवाज देना

वह अनामय अक्षर निरामय
आनंदघन खुद आएगा
मत हो करूण मुख, मुग्‍धे.. हंस दे...
मौका कहां फिर पाएगा ?

Views: 294

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on August 19, 2012 at 4:18pm

आदरणीय सौरभ जी, आपके उद्गार प्राण फूंकने वाले हैं । आपने जिन मूलभूत बिन्‍दुओं की बात की उसे मैं समझ नहीं पाया यदि कुछ चीजें मुझे सीखनी चाहिए, तो कृपया उसका अवश्‍य उल्‍लेख करें । मैं बहुत आभारी  होउंगा क्‍योंकि सही दिशा-निदेश मिलना आवश्‍यक है, आशा है आप मेरी मदद करेंगें, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2012 at 9:26am

हे अधर अपनी धरा को
क्षणभर सनातन साज देना
दूर तारों में छिपा जो
उसको जरा आवाज देना

बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! अभिभूत कर दिया आपने, भाई.

भाई राजेश कुमारजी, आपकी इस मंच पर की अबतक की समस्त रचनाओं को दख-पढ़ कर आपके प्रति असीम उम्मीदों से भर गया हूँ तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिये. कुछ मूलभूत विन्दुओं को आप यदि साध लें तो आपमें उच्च रचना-संभावनाएँ है. आपका अद्भुत भाषा-संस्कार सम्मोहित करता है. आपके रचना-संसार को आपकी समृद्ध भाषा आवश्यक आधार व संबल देती है.

शुभ-शुभ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service