1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
Ajay kumar tiwari's Comments
Comment Wall (7 comments)
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…

अपने मित्रो और परिचितों को ओपन बुक्स ऑनलाइन से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक करे...Welcome to
Open Books Online
Sign Up
or Sign In
कृपया ध्यान दे...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
6-Download OBO Android App Here
हिन्दी टाइप
देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...
साधन - 1
साधन - 2
Latest Blogs
देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम
कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
दोहा पंचक. . . . .दीपावली
साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
दोहा पंचक. . . . .इसरार
शोक-संदेश (कविता)
ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
दोहा दशम्. . . . . गुरु
लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
दोहा सप्तक. . . नजर
कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
भादों की बारिश
ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
कुंडलिया. . . . .
Latest Activity
देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey posted a blog post
कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)